Monday, 6 July 2020

वन्दे गुरुवर वन्दे महेश्वर

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आया सावन सूना है मन
बूंद न बरसा छलका है गम
संकट में शिव का आराधन
देव नही मंदिर के प्रांगण.
सांझ प्रात करते हैं वंदन
टेर सुनाता चंचल चितवन
ढूंढ रहा छवि ईश का अनुपम
छोड़ चले हर सीमा बंधन.
नेह में डूबी स्नेह से सिमटी
लहू-लिपटी धरती की मिट्टी
पथराई आंखों से कहती
मिट जायेगी ख्वाहिश किसकी.
दंभी बनकर धमकाते हैं
अनुचित कार्य किये जाते हैं
दोषहीन दंडित होते हैं
आहत  होते मर जाते हैं.
तांडव नृत्य न कर अंबर पर
थाम लो कर हे नाथ दिगंबर
हर-हर बोले भोले-शंकर
वन्दे गुरुवर वन्दे महेश्वर.
शुभ्र रुप कर लो अब धारण
महके-दमके जग का आनन
प्रेम का सावन बरसे आंगन
चहके प्रीत मधुर-मनभावन.
भारती दास





10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शनिवार 11 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद विभा जी

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  2. बेहद सुंदर और सराहनीय प्रार्थना।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद श्वेता जी

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  3. व्वाहहहह.
    बेहतरीन..
    सादर..

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद यशोदा जी

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  4. वाह! भारती जी बहुत सुंदर भावों से सजी भोलेनाथ की अभ्यर्थना 👌👌भक्ति में भावों से ही रस है। हार्दिक शुभकामनाएँ और आभार🌹🌹🙏🌹🌹

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद रेणु जी

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  5. सावन में भोले की प्रार्थना बहुत सुंदर

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  6. बहुत बहुत धन्यवाद सर जी

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