उर्मिले जनु करू वियोग
भाग्य सं हमरा भेटल अछि
सेवा के संयोग, उर्मिले जनु....
राज कुमारी जनक दुलारी
तेजल राजसी योग
नाथ शंभु मां आदि भवानी सं
कयलहुं अनुरोध
रघुकुल भानु के संग जायब
अछि नयन में मोद, उर्मिले जनु....
अहीं हमर छी प्रणय के देवी
अहीं सं अछि मृदु नेह
चित्र बनि के दृग बसल छी
अहीं पूजित उर गेह
अहीं प्रिय छी मन के मोहिनी
अहीं सुखद छी बोध, उर्मिले जनु....
हे कल्याणी शौर्य दायिनी
भाव वंदिनी छी
अहीं विनोदिनी अहीं सुहासिनी
पद्म लोचनी छी
हे राजनंदिनी पुण्य भागिनी
छोडू दुख और क्षोभ, उर्मिले जनु....
आर्य पुत्र हम छी बड़भागिनी
पथ अनुगामिनी छी
जाऊ कंटक बाट देखब
चिरकाल संगिनी छी
धरा साक्षिणी सकल देव छथि
नहि उमड़त दृग नोर...
उर्मिले जनु करू वियोग.
भारती दास ✍️
(मैथिली गीत)
BHARTI DAS
Friday, 17 June 2022
उर्मिले जनु करू वियोग
Sunday, 12 June 2022
बाल-कविता
बाय-बाय नानी बाय-बाय दादी
ख़त्म हुयी सारी आजादी...
इतनी सुन्दर इतनी प्यारी
बीत गयी छुट्टी मनोहारी
खुल़े हैं स्कूल ख़ुशी है आधी
खत्म हुयी सारी आजादी ...
तेज धूप में दौड़ लगाते
मीठे आम रसीले खाते
अब बस्तों ने नींद उड़ा दी
ख़त्म हुयी सारी आजादी...
बहुत हुयी मौजे मनमानी
अनगिनत मस्ती शैतानी
अब उमंग पढने की जागी
ख़त्म हुयी सारी आजादी ...
भारती दास ✍️
Thursday, 9 June 2022
गंगा गीत
सुनो हे माँ मेरे उर की तान
क्यों मुँह फेरी गैर नहीं हूँ
तेरी हूँ संतान,सुनो हे.....
दुखिता बनकर जीती आई
पतिता बनकर शरण में आई
मुझ पर कर एहसान,सुनो हे......
मोक्ष-दायिनी पाप-नाशिनी
कहलाती संताप-हारिणी
प्रेम का दे दो दान,सुनो हे......
शांति-सद्गति सब-कुछ देती
जन-जन करते तेरी भक्ति
करके हरपल ध्यान,सुनो हे.......
पुण्यमयी तेरी जल-धारा
तूने सगर पुत्रों को तारा
तेरी महिमा महान,सुनो हे.......
तेरी सुमिरन जो भी करते
नर नारी सब मुक्ति पाते
तू शिव की वरदान,सुनो हे.......
भारती दास ✍️
Friday, 3 June 2022
भक्ति को ना बदनाम करें
भक्ति को ना बदनाम करें
गौरी शंकर का गुणगान करें....
भक्ति के व्यापक अर्थ जो जाने
सत्य ही शिव है वो पहचाने
मूढमति उलझन में भटके
प्रभु नागेश्वर का ध्यान करें....
तमस अनेकों होती असुर में
धैर्य की शक्ति होती है सुर में
विवश विकल जब होती धरती
हर की महिमा का बखान करें....
सीमाबद्ध नहीं होते दिगंबर
कण कण में बसते हैं ईश्वर
मौन सभा होती प्रांगण में
डमरूधर सच्चा निदान करें....
कामना जो भी है मनकी
उपासना करते हैं उनकी
भय नहीं है कभी किसी से
महेश्वर सदा कल्याण करें....
भारती दास ✍️
Sunday, 29 May 2022
हे सर्वस्व सुखद वर दाता
हे सर्वस्व सुखद वर दाता
चिर आनंद जहां पर पाता
हरी भरी सी सुभग छांव में
हंसते गाते सब सहज गांव में
उस मनहर बरगद की छाया
जहां विद्व जन वेद को ध्याया
पतित पावन अति मनभावन
मोक्ष प्रदायक रहते नारायण
जप तप स्तुति धर्म उपासना
योगी यति करते हैं कामना
ब्रह्म देव श्री हरि उमापति
कष्ट क्लेश हरते हैं दुर्मति
यमदेव हर्षित वर देते
आंचल में खुशियां भर देते
सत्यवान ने नव जीवन पाई
मुदित मगन सावित्री घर आई
करती प्रार्थना सभी सुहागिन
वैसे ही सौभाग्य बढ़ती रहे हरदिन.
भारती दास ✍️
Wednesday, 18 May 2022
रहे सर्वथा उन्नत जन्मभूमि
जिन गलियों में बचपन बीता
जिन शैशव की याद ने लूटा
उसी बालपन के आंगन में
हर्षित हो कर घूम आये हैं.
स्मृति में हर क्षण मुखरित है
दहलीज़ों दीवारों पर अंकित है
स्नेह डोर से बंधे थे सारे
पुलकित होकर झूम आये हैं.
नहीं थी चिंता फिकर नहीं था
भाई बहन संग मोद प्रखर था
सुरभित संध्या के आंचल में
पुष्प तरू को चूम आये हैं.
न जाने कब हो फिर आना
इक दूजे से मिलना जुलना
रहे सर्वथा उन्नत जन्मभूमि
जहां स्वप्न हम बुन आये हैं.
भारती दास ✍️
Saturday, 7 May 2022
पोषित करती मां संस्कार
दशानन के पिता ऋषि थे
पर मिला नहीं शिक्षण उदार
आसुरी वृत्तियों से संपन्न
माता थी उनकी बेशुमार.
दारा शिकोह को भाई ने मारा
कितना कलंकित था वो प्यार
शाहजहां को कैद किया था
ऐसा विकृत था परिवार.
वहीं दशरथनन्दन की मां ने
दी थी सुंदर श्रेष्ठ विचार
श्रीराम का सेवक बनकर
अपनाओ सदगुण आचार.
संघमित्रा और राहुल को पाला
यशोधरा ने देकर आधार
तप त्याग की महिमा सिखाई
बौद्ध धर्म का किया प्रसार.
ब्रह्म वादिनि थी मदालसा
पुत्रों को दी थी ब्रह्म का सार
सिर्फ कर्म स्थल ये जग है
विशुद्ध दिव्य तुम हो अवतार.
पिता हमेशा साधन देता
मां ही देती संपूर्ण आकार
सद आचरण प्रेम सिखाती
देती दंड तो करती दुलार.
सही दिशा उत्कृष्ट गुणों से
पोषित करती मां संस्कार
जैसा सांचा वैसा ही ढांचा
जिस तरह गढता कुंभकार.
भारती दास ✍️
Saturday, 30 April 2022
अपना स्वेद बहाते हैं वो
दिन डूबा संध्या उतरी है
पशुओं की कतार सजी है
खेतों और खलिहानों से
आने को तैयार खड़ी है.
बिखरी लट है कृषक बाला की
मलीन है उसका मुख मस्तक भी
कठिन परिश्रम करने पर भी
दीन दशा गमगीन है उसकी.
स्वर्ण सज्जित भवन हो उन की
चाह नहीं है ऐसी मन की
मिले पेट भर खाने को
दर्द वेदना ना हो तन की.
दीनता का रूधिर पीकर
जीते हैं रातों को जगकर
भूमि का भी हृदय क्षोभ से
रह जाते है कंपित होकर.
धूपों में बरसातों में भी
तपते भींगते रहते हैं जो
वही गरीबी को अपनाकर
निष्ठुर पीड़ा सहते हैं वो.
विटप छांह के नीचे बैठे
गीले गात सुखाते हैं
कामों में फिर हो तल्लीन
अपना स्वेद बहाते हैं.
भारती दास ✍️
Sunday, 24 April 2022
बंधन मोक्ष का बनता कारण
मन ही शत्रु मन ही मित्र
मन ही चिंतन मन ही चरित्र
मन से ही है दशा-दिशा
मन से ही है कर्म समृद्ध.
मन ही शक्ति मन ही ताकत
मन ही साथी मन ही साहस
हरता विकार दुर्बलता मन
मन ही आनंद की देता चाहत.
सत्य-असत्य और क्रोध तबाही
पग-पग पर देता है गवाही
भावनाओं में है रोता हंसता
मन रहता गतिमान सदा ही.
मन ही दर्पण मन ही दर्शन
मन ही राग वैराग तपोवन
मन से ही संगीत सुहाना
समस्त कामना जीवन है मन.
जहां तहां करता मन विचरण
प्रयत्न शील रहता है क्षण-क्षण
बंधन मोक्ष का बनता कारण
खुद ही मन करता अवलोकन.
भारती दास ✍️
Saturday, 9 April 2022
श्री राम राघव जय करे
हे जग आराधक भक्त साधक
श्री राम-राघव जय करे
दीन पोषक क्षोभ शोषक
मोह नाशक भय हरे.
कमल लोचन भगत बोधन
शील संयम शुभ करे
आदर्श वाचन पतित पावन
दंभ रावण का हरे.
हे तप तितिक्षा शौर्य शिक्षा
रत परीक्षा में रहे
सफल साधना अटल कामना
शत वेदना थे सहे.
अभिराम मुख सुखधाम सुख
दानव दमन करते रहे
हनुमान के हर रोम में
प्रभु राम जी बसते रहे.
हे विराट शोभा प्रभात आभा
साध यही मेरी नाथ हो
प्रति उर निवासी गुण शील राशि
अगाध नेह अनुराग हो.
हे अगम अगोचर परम मनोहर
विषाद नाश विकार हो
करुणा नयन पद में नमन
दिन-रात ही स्वीकार हो.
भारती दास ✍️