Sunday, 17 September 2023

हे गौरी सुत हे गजबदन

 हे गौरी-सुत हे गजबदन  

एक निवेदन करते हम

झुककर भी मैं पहुँच ना पाती

जहाँ तुम्हारे दोनों चरण 

हे गौरी सुत हे गज बदन .......

मैंने सबसे यही सुना है 

दुखियों में करते विचरण 

खोज खोज के मैं हारी हूँ

कब दोगे दर्शन भगवन

हे गौरी सुत हे गज बदन..........

मेरे जीवन में क्यों होती 

क्षोभ विकलता की उन्मेष 

तेरा अपनापन पाने को

नाथ मैं सह लेती हर क्लेश 

हे गौरी सुत हे गज बदन ..........

अब देर न कर हे लम्बोदर 

अपनी करुणा बरसा मुझपर

मेरे चित-आंगन में रहना 

नमन करूँ मैं जीवन भर      

हे गौरी सुत हे गज बदन.........

Happy Ganesh chaturthi

भारती दास ✍️

Wednesday, 6 September 2023

हे कृष्ण केशव मुकुन्द माधव

 हे कृष्ण केशव मुकुन्द माधव

नंद यशोदा के सुत दुलारे

हे चक्रधारी बांके बिहारी

पतित पावन गोविन्द प्यारे

हे कृष्ण केशव मुकुन्द माधव

नंद यशोदा के सुत दुलारे....

वंशी बजैया नाग नथैया

दीन दुखी के सखा सहारे

हे कंसारी मदन मुरारी

गोवर्धन धारी तुम्हें पुकारे

हे कृष्ण केशव मुकुन्द माधव

नंद यशोदा के सुत दुलारे....

परम मनोहर अगम अगोचर

राधा वल्लभ दरश दिखा रे

ना हममें शक्ति ना भक्ति बल है

शरण में आए हैं हम तुम्हारे 

हे कृष्ण केशव मुकुन्द माधव

नंद यशोदा के सुत दुलारे....

भारती दास ✍️




Saturday, 26 August 2023

रक्षा का पर्व----रक्षाबंधन

 श्रावण शुक्ल-पूर्णिमा अतिविशिष्ट एवम महत्वपूर्ण तिथि मानी जाती है .इस दिन भाई –बहन के स्नेहिल बंधन का पर्व रक्षा –बंधन मनाया जाता है .बहन ,पावन-प्रेम से सरावोर कच्चे धागे को अपने भाई की कलाई पर बाँधती है और इसके बदले रक्षा एवम संरक्षण का वचन लेती है .

                ‘’ रक्षा –बंधन ‘’ऐसा बंधन है जो जिसे भी बांधा जाये उसकी रक्षा का संकल्प किया जाता है. किसी भी रूप में रक्षा का प्रण लेना ही रक्षा बंधन कहलाता है .रक्षा –बंधन के सन्दर्भ में कई कथाएँ प्रचलित है .

मान्यता है कि देवासुर संग्राम में सुर –असुर दोनों ही एक –दूसरे पर विजय प्राप्त करने के लिये युद्ध में विरत थे .

देवता अपने अस्तित्व एवम धर्म के लिये नीति युद्ध कर रहे थे वहीँ असुर अपने अहंकार के लिये साम्राज्य स्थापित करना चाहते थे. 

 धर्म –अधर्म का ये युद्ध कई वर्षों तक चला और अंत में असुर ही विजयी हुये.पराजय सदा ही पीड़ा,कष्ट एवम चिंता को बढाती है .इस पराजय के बाद देवताओं की स्थिति दयनीय हो गयी थी,तो इंद्राणी ने श्रावण शुक्लपूर्णिमा के दिन विधानपूर्वक रक्षासूत्र तैयार कर उसे अभिमंत्रित किया और देवगुरु वृहस्पति ने स्वस्तिवाचन के साथ इंद्रदेव के दायें हाथों में बांध दिया जिसके फलस्वरूप इंद्रदेव फिर से विजय होकर  स्वर्ग के राजा बने.उसी समय से रक्षा-बंधन का पर्व मनाया जाने लगा .

                रक्षा बंधन का ऐतिहासिक महत्त्व मेवाड़ की रानी कर्मवती से जुड़ा हुआ है. गुजरात के राजा बहादुरशाह ने मेवाड़ पर हमला कर दिया और मेवाड़ को चारों ओर से घेर लिया ऐसे संकट के समय में रानी कर्मवती ने हुमायूँ को राखी भेजी और सहायता की आशा की, हुमायूँ ने भी राखी की लाज रखी तथा रानी की हर तरह से रक्षा की.  हुमायूँ , बहादुर शाह की ही  जाति का था परन्तु उसने कुछ भी चिंता न करके एक हिन्दू बहन की रक्षा की और सम्मान दिया. इस त्योहार का धार्मिक तथा ऐतिहासिक महत्त्व सर्व –विदित है .इससे एकता का भाव प्रवाहित होता है.बहन,भाई को राखी बाँधती है व भाई हर संभव रक्षा करने की वचन देता है. लेकिन वर्तमान समय में राखी का बंधन एक प्रतीक बनकर रह गया है.अपने वचन का निर्वाह कितना कर पाता है ये तो बहनों की दुर्दशा देखकर पता चलता है. हिंसा, हत्या, छेड़-छाड़ और बलात्कार कितने ही घटनायें आये दिन होते रहते हैं. अपनी बहन की रक्षा के वचन देते हैं तथा दूसरे की बहन के साथ गंदी हरकत करते है. क्या यही संकल्प हर वर्ष लेते हैं?कितने ही ऐसे प्रश्न है जिसके उत्तर नहीं मिलते है. हमारा ह्रदय संवेदनशील है या नहीं,इसपे भी शक होता है.

         रक्षा –बंधन ,खूबसूरत व्यवसाय बन गया है .इस दिन ढेरों राखियाँ,मिठाईयां एवम अन्य उपहारों की खूब बिक्री होती है.लोग स्नेह भूल कर मुनाफा ही कमाते है.परंपरा की प्रवाह में रक्षा –बंधन बस एक पर्व रह गया है.वो उत्साह वो उमंग न जाने कहाँ खो गयी है.भाई –बहन एक दूजे के लिए समय नहीं निकाल पाते है,लेकिन इसी बहाने मिलना हो जाता है.हमारी नीरस जिन्दगी में ये त्योहार प्रेम की वर्षा करते है.यह सांस्कृतिक त्योहार विश्व –प्रेम की पुनरावृति कर जीवन में खुशियाँ प्रदान करते है. 

जीवन में सहयोग सिखाता 

सब-जन में उत्साह समाता 

प्रेम-रूप अमृत की वर्षा 

सावन की सौगात है अच्छा.

भारती दास ✍️

Monday, 14 August 2023

हे भारत के संतान श्रेष्ठ

कुछ अनुभूति अंकुरित हुई है 

नव स्फूर्ति विस्तरित हुई है

हे शुभ प्रभात के बाल-श्रेष्ठ

महसूस करो क्या विदित हुई है.

शुभ कर्म करो ना शर्म करो 

संकल्प करो ना विकल्प धरो 

हे लोकहित कल्याण-श्रेष्ठ 

कर्णधार बनो ना प्रहार करो.

बहुत सो चुके बहुत खो चुके 

अब देर करो ना बहुत रो चुके 

हे चेतना के ज्ञान-श्रेष्ठ 

फिर निजता में क्यों सिमट चुके.

यों डरते रुकते ठहरों ना 

आग बढ़कर अब सोचो ना 

हे नव जीवन के प्राण-श्रेष्ठ

बनो समर्थ यूँ ही भटको ना.

अपने अन्दर चिंगारी भर लो 

जोश उमंग बस सारी भर लो

हे शक्तिवान बलवान-श्रेष्ठ 

प्रचंड वेग हितकारी भर लो.

प्रभु की शक्ति साथ खड़ी है 

आशीष की बारिश बरस रही है 

हे भारत के संतान-श्रेष्ठ

समय की धारा बीत रही है.

भारती दास ✍️

Saturday, 29 July 2023

हूं अंतिम अरुण क्षितिज का

 एक पिता ने कहा खेद से

विषम बहुत है सूनापन

नीरव-नीरव वृद्ध नयन यह

खोज रहा है अपनापन.

भूल गया क्या, याद है कुछ भी

था तेरा भोला सा बचपन

नेह वही पाने को मचलता

बूढ़ा सा ये तन-मन हरदम.

भार वेदना का ढोया था

जब नन्हें थे तेरे कदम

तड़प-तड़प से मैं जाता था

जब बहता तेरा अश्रु-कण.

चिर आकांक्षा निष्फल इच्छा

अथाह असीम है व्याकुलतापन

अवसाद अनंत है अकथ विषाद है

व्यर्थ विफल है एकाकीपन.

हूं अंतिम अरुण क्षितिज का

आलोक हीन वैभव विहीन 

विकल दिवाकर डूबता जैसे

मुख मलिन अनुराग हीन.

भारती दास ✍️

Saturday, 22 July 2023

फिर-फिर घिर-घिर जाती नारी

 

फिर-फिर घिर-घिर जाती नारी

रक्त बहाती जाती बेचारी

तृषित कंठ में विष का प्याला

प्राण गंवाती जाती नारी

फिर-फिर घिर-घिर जाती नारी....

आंसू से भीगे आंचल में

विप्लव भर लेती हरपल में

शापित जैसा जीवन लेकर

अपराधी सी जीती नारी

फिर-फिर घिर-घिर जाती नारी....

कब हंसती कब रो लेती है

क्या पाती क्या खो देती है

बस आहुति देती रहती

निर्मल पावन मन की हारी

फिर-फिर घिर-घिर जाती नारी....

व्यथा भार संताप को ढोती

निशि-वासर पीड़ा में होती

घायल तन-मन करता रहता

अधम नीच और दुराचारी

फिर-फिर घिर-घिर जाती नारी....

भारती दास ✍️



Saturday, 15 July 2023

बरसो सावन मनभर बरसो

 बरसो सावन मनभर बरसो

शिव के नील-ग्रीवा पर बरसो

बेला गुलाब चंपा पर बरसो

पेड़ों के झूमते शाख पर बरसो

खगों के गाते पाख पर बरसो

बरसो सावन मनभर बरसो....

रज के हर कण-कणमें बरसो

मृदु गुंजन कर आंगन में बरसो

चंचल मुख आंचल में बरसो

नन्हे-नन्हे करतल में बरसो

बरसो सावन मनभर बरसो....

पर्वत मैदान नदी में बरसो

झाड़-फूस की कुटी में बरसो

भीख मांगती मुट्ठी में बरसो

भावविहीन कुदृष्टि में बरसो

बरसो सावन मनभर बरसो....

भारती दास ✍️



Saturday, 8 July 2023

आंसू

 आँसू की क्या दूं परिभाषा

इसकी नहीं है कोई भाषा

गम में, दुःख में, सुख में सब में

आहत होती ये जब तब में

याद आये जो बीते कल की

तो बस झट से आखें छलकी

किसी से जब कुछ कह नही पाए

आँसू मन की व्यथा बताये

समर्पण में छलक जाता 

सुहाने पल में हँस देता 

दुआ में भी ये रहता है

दया के साथ जीता है

नयन से जब भी बहता है

विधाता की ये श्रद्धा है

खुदगर्जी नहीं होती इसकी

सादगी हरदम इसमें होती

कुछ भी हो पर समझ यही है

हर पल सबके साथ वही है.

भारती दास ✍️


Saturday, 24 June 2023

अनुकरणीय ये ग्रंथ है

 तुलसी के रामायण की

महिमा है कुछ खास 

अनुकरणीय ये ग्रंथ है

विद्वजन कहते हैं उल्लास.

रघुकुल भूषण रामजी 

थे आज्ञाकारी पुत्र

तरुण तपस्वी बने सदा 

पूर्ण किये कर्म सूत्र.

सर्वप्रथम वे मित्र जो

नहीं रखते हैं द्वेष

आपत्ति के काल में

हरते मन के क्लेश.

द्वितीय माता जानकी

रही थी पत्नी आदर्श

श्रीराम जी के साथ में

वन में सही थी कर्ष.

तृतीय सौमित्र पुत्र वे

तत्क्षण हुए अधीर

सेवक बनकर चल पड़े

संग सिया-रघुवीर.

चतुर्थ कैकेयी सुत महान

छोड़ कर सिंहासन राज

चरण पादुका अराध्य के

किये मानकर काज.

पंचम अंजनी लाल बिना

विकल हुए भगवान

द्रोणागिरि ऊठा लाये

बलशाली हनुमान.

षष्ठम गुरु के चरण में

रख देते जो शीश

समस्त वैभव संपदा

उन्हें देते हैं जगदीश.

सप्तम भक्त की आस्था

शबरी मां का स्नेह

जूठे बेर खाकर प्रभु

हर्षाये अति नेह.

संबंधों को प्रेरणा

देता है ये ग्रंथ

है जीवन की संजीवनी

हर दोहा हर छंद.

भारती दास ✍️


Sunday, 18 June 2023

रथ पर आये श्याम सलोने

 

उष्ण-तरल का सुखद मिलन है

शांत हुई बूंदों से तपन है 

आकाश में बादल छाये हैं

धरती की प्यास बुझाये हैं

समस्त सृष्टि के पालनकर्ता 

अर्जुन के प्यारे प्राण सखा

अधर्म का अंत करने के हेतु 

धर्म की आस्था जगाने हेतु 

सारथि बनकर रथ हांके थे

भूमि का क्षोभ संताप देखे थे 

नज़रें जहां भी जाती छल था

विविध क्लेश को सहता मन था

अधरों पर स्मित था निश्छल

थे बलिदानी वे त्याग के संबल 

दीन जनों के बने सहारे 

कठिन क्षणों में उन्हें उबारे

पीताम्बर धारी भगवान

लाये भक्ति का पैगाम  

भक्तों में उत्साह जगाने

रथ पर आये श्याम सलोने.  

भारती दास ✍️