Wednesday 17 July 2024

कौआ-कोयल दोनों हैं काले


बालक ने पूछा माता से

कौआ-कोयल दोनों हैं काले 

पिक को मिलता मान सदा ही 

काग को क्यों कहते बड़बोले.

मां ने कहा, सुन मेरे प्यारे 

रुप कभी नहीं देता सम्मान 

भावनाओं का आधार है वाणी 

जो कोयल की होती पहचान.

आपनी मीठी मोहक सुर में

कोयल कू-कू करती रहती 

गम सारे दुःख दूर हटाकर

स्मित होंठों पर ले आती.

कौआ,कर्कशता के कारण 

जन सामान्य से होता है दूर 

कर्णप्रिय नहीं होती बोली 

स्वार्थी धूर्त होता भरपूर.

क्षणिक आकर्षण रूप का होता 

गुण जीवन भर साथ निभाता 

अप्रिय वचन कठोर स्वभाव 

कभी मनुष्य को रास न आता.

प्रेम-पगी शीतल सी वाणी 

विश्वास अनंत भर देती है 

क्रंदन करता हृदय-नीड़ से

अवसाद समस्त हर लेती है.

भारती दास ✍️ 


Sunday 30 June 2024

विह्वल होती यह धरती है

 


पीले पीले तरू पत्रों पर

दिखी आज तरूनाई है 

अंतर के कोलाहल में भी 

हर्ष सुखद फिर छाई है।

धरा पुत्र स्वार्थी बन बैठा 

क्लांत प्रकृति अकुलाईं है 

सुख अमृत दुख गरल बना है 

चोट स्पंदन की दुखदाई है।

शीतल पवन गाता था पुलकित 

हृदय कुसुम खिल जाते थे

अतृप्त मही की दृष्टि पाकर

व्योम तरल कर देते थे।

प्रीत रीत से भी है ऊपर

जैसे नभ के घनमय चादर

प्रेम से भरकर बूंदें गिरते 

भू के हर कोने में जाकर।

उमड़ घुमड़ कर मेघ गरजते 

बिजली चमचम करती है 

तृण-तृण पुलक उठा है सुख से 

विह्वल होती ये धरती है।

भारती दास ✍️ 


Saturday 15 June 2024

सब दोष मति का मूल है

 संतप्त हृदय बैठा चिड़ा था 

चिड़ी भी थी मौन विकल

निज शौक के लिए उड़ चला 

संतान जो था खूब सरल‌।

उसके पतन में था नहीं 

मेरा जरा भी योगदान 

स्वछंद तथा स्वाधीन था 

सुख स्वप्न का उसका जहान।

मन से, वचन से ,कर्म से 

मैं तो सदा ही साथ था 

उसकी सरलता-धीरता पर

केवल किया सब त्याग था।

शैशव दशा में जब वो था

पीड़ा अनेकों थे सहे 

आचार और व्यवहार संग 

सद्ज्ञान उसमें थे गहे।

समय यूं ही व्यतीत हुआ 

बचपन छोड़ कर युवा हुआ 

सौन्दर्य के आभा तले 

संस्कार उसका फीका हुआ.

सपूत कुल का क्षय करें

ये सर्वथा प्रतिकूल है 

हठधर्म ही पाले सदा 

सब दोष मति का मूल है.

यह सोचकर निर्धन हुआ 

मैं मानधन से हो विहीन

बलहीन और निर्बल हुआ 

मैं पिता, अब दीन हीन।


भारती दास ✍️ 


Wednesday 15 May 2024

गंगा तेरी शरण में आया


गंगा तेरी शरण में आया

तन-मन-धनसे तुझको ध्याया

माँ सुन लो मेरी मनुहार....

तेरे शीतल निर्मल जल से

पाप-कलंक मैं धोया मन से

रखता हूँ मैं स्वच्छ विचार

मां सुन लो मेरी मनुहार....

करूँ प्रतिज्ञा वादे और प्रण

जब तक है ये मेरा जीवन

देश बढेगा सौ-सौ बार

मां सुन लो मेरी मनुहार....

मैंने अपना सब कुछ छोड़ा

जान हथेली पर ले दौड़ा

आज वक्त की यही पुकार

मां सुन लो मेरी मनुहार....

तेरे जल में डूब मरूँगा

खाली हाथ नहीं जाऊंगा

यही प्रार्थना यही गुहार

मां सुन लो मेरी मनुहार ....

चरणों में ये सर झुका है

अब पीड़ा से मन थका है

दे-दे मैया स्नेह-दुलार

मां सुन लो मेरी मनुहार....

भारती दास ✍️


                

Wednesday 1 May 2024

मजदूर

 

नहीं बनता समाज बड़ों से

नहीं चलता सब काज बड़ों से 

कार्य कुशल व्यक्ति ही महान 

जिससे होती उसकी पहचान.

तूफानों के बीच में रहते 

अथक मनोबल मन में भरते

बारिश की बूंदों को सहते 

जी तोड़ मेहनत वो करते.

प्रखर ताप में तन को जलाते

ऊंचे ऊंचे महल बनाते 

खुद रहने खाने को तरसते

सच्चे हितैषी बनकर जीते.

वे कामचोर इंसान न होते 

चोर नहीं बे" इमान न होते 

लोकहित से जुड़े जो होते

वो सभी मजदूर ही होते.

मजदूर बिना कुछ काम न होता

जन समाज की शान न होता 

धर्म कर्म स्वाभिमान न होता 

इक दूजे का मान न होता.

भारती दास ✍️ 

Tuesday 16 April 2024

राम अनंत और कथा अनंता


गहन अनुभूति श्री रामकथा है

अतुलित उमंग की परम प्रथा है

वाल्मीकि का मानस लोक

वर्णित धर्म अर्थ और मोक्ष

महाकवि भवभूति का कहना

है राम कथा करुणा की महिमा

पाप नाश करते भगवान

कर देते हर व्यथा निदान

पद्द्माकर –मतिराम, कवि  ने

मोहक –रूप अविराम छवि ने

राम रसायन  करके पान

वो पा गए दुर्लभ स्थान

भक्ति रस का सागर है ये

गौरवमय श्रद्धा आदर है ये

तुलसीजी थे जग विख्यात

वेद निहित थी उनकी बात

दोहे चौपाई सोरठा छंद

रामायण है अद्भुत ग्रन्थ

मुसलमान थे संत रहीम

वे राम बिना थे प्राणहीन

राम आदर्श जो करे समाहित

मोक्ष प्राप्ति से रहे न वंचित

तीनों तापों से होगी मुक्ति

राम नाम है ऐसी शक्ति

भारती दास✍️

Friday 12 April 2024

मिथिला महान

 

जगत वंदनी जनक नंदिनी

सीता राम कें प्रणय जतऽ 

एहन सुन्दर पावन धाम 

जग में कहू छै और कतऽ .

छलथि विदेह तपस्वी राजा

विज्ञ अनंत परम विद्वान 

हुनकर यश जयनाद देखि कें

भेलथि अधीर इंद्र भगवान.

ध्वस्त भेल सब कालखंड में 

तैयो जीवित अछि ललित-ललाम

मौन वेदना सं भरल अछि 

परम पुनीत ओ अमृत धाम.

नष्ट-विनष्ट भेल एकता 

भेद-भाव बढ़ि गेल अनंत 

स्वजन विरोधी भऽ रहल छथि

संतप्त ह्रदय संदेह कें संग.

क्षोभयुक्त उन्माद समेटू 

चित्त में भरू कोमल अनुराग 

संस्कृति कें गौरवमय-गरिमा 

बनि रहल अछि दीन विषाद.

रहू जुड़ायेल सबकें जुड़ाऊ

जुड़िशीतल कें शुभ पैगाम 

हर्षित भय त्योहार मनाऊ 

विहुंस उठय ई मन और प्राण.          

भारती दास ✍️

Friday 22 March 2024

मैं हूं वही अधूरा सा बिहार

  मैं हूं वही अधूरा सा बिहार 

जन्म लिये हैं इस धरती पर

चंद्रगुप्त अशोक और बिम्बिसार

मैं हूं वही अधूरा सा बिहार....

धर्म क्षेत्र में ज्ञान क्षेत्र में

गीत संगीत कला क्षेत्र में

जिसकी महत्ता है उदार

मैं हूं वही अधूरा सा बिहार....

गुरु गोविंद सिंह की कहानी

सुनकर भरता आंखों में पानी

बेदर्द मुगल का अत्याचार

मैं हूं वही अधूरा सा बिहार....

गौतमबुद्ध का अद्भुत गाथा

गया का बोधिवृक्ष सुनाता

ज्ञान-तप और सम्यक विचार

मैं हूं वही अधूरा सा बिहार....

राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने भी

कर्तव्य निभाया और मान भी

नमन देश करता आभार

मैं हूं वही अधूरा सा बिहार....

रामधारी की हर इक कविता

समाज की परिवेश दिखाता

तन-मन में भरता उदगार

मैं हूं वही अधूरा सा बिहार....

नेताओं को है अपनी चिंता

सेवाओं से वंचित है जनता

 विवशतायें करती है लाचार

मैं हूं वही अधूरा सा बिहार....

भारती दास ✍️

Wednesday 6 March 2024

आशुतोष भोलेनाथ


आशुतोष भोले नाथ

उमापति हे गौरी नाथ

महान चेतना के सनाथ

सर्प भूत-प्रेत के साथ.

आदि काल से ही शिव 

कला के पर्याय शिव

विशद हैं आचार्य शिव

अर्थ और अभिप्राय शिव.

साधना के सार शिव 

गुणों के आधार शिव

मोहक श्रृंगार  शिव 

काम के संहार शिव.

जीवन में उल्लास का 

प्रेरणा व प्रकाश का 

सौन्दर्य बन प्रकट हुए 

विराट रूप विकट हुए.

चिंतन मनन भजन से

उपासना संकल्प से 

सत्य स्वरूप धर्म से 

सुखद पुण्य कर्म से.

शिवत्व को बसाना है 

जगत को बचाना है 

आत्मबोध पाना है 

शिव-शक्ति को मनाना है.

भारती दास✍️


               

Sunday 18 February 2024

वर्तमान नारी का जीवन

 


वर्तमान नारी का जीवन

क्यों इतनी व्यथित हुई है

व्याभिचारी-अपराधी बनकर

स्वार्थी जैसी चित्रित हुई है.

जब-जब भी बहकी है पथ से

वो पथभ्रष्ट दूषित हुई है

पीड़ा-दाता बनकर उसने

खुद ही जग में पीड़ित हुई है.

रूप कुरूप है उस नारी का

जब सृजन सोच से भ्रमित हुई है.

जीवन में होकर गुमराह 

सदा सदा ही व्यथित हुई है.

परिवार राष्ट की लाज मिटा कर 

भाग्य भी उसकी दुखित हुई है.

युग-युग का इतिहास ये कहती, 

नारी ही तो प्रकृति हुई है.

त्याग- तपस्या थी ऋषियों की,

गरिमामय सी सृजित हुई है.

है निवेदन उस नारी से, 

जो कभी दिग्भ्रमित हुई है.

वो अपना क्षमता दिखलाए, 

जिससे जग में पूजित हुई है.

भारती दास ✍️