पल बीत गया क्षण बीत गया
यादों का मंजर है ठहरा सा
पुलक भरी सुख का अनुगुंजन
हृदय के अंदर है बिखरा सा.
वो गेह कहां वो स्नेह कहां
था मुस्काता सब चेहरा सा
स्मृति से छनकर आती है
था जहां प्रेम का पहरा सा.
अब समझ में सब आता है
जो कुछ नित्य कहा करते थे
ज्ञान धर्म उत्थान की बातें
पिताजी सिखलाया करते थे.
उन्हें याद कर गदगद होते
जैसे पावन हो कथा सुहानी
निज मन ही झकझोर रहा है
नयनों में भर आता पानी.
व्यस्त रहे सुख के संचय में
भूले मद में अमृत वाणी
व्याकुल उर अब ढूंढ रहा है
उन कदमों की धूमिल निशानी.
भारती दास ✍️
यादों का मंजर है ठहरा सा
पुलक भरी सुख का अनुगुंजन
हृदय के अंदर है बिखरा सा.
वो गेह कहां वो स्नेह कहां
था मुस्काता सब चेहरा सा
स्मृति से छनकर आती है
था जहां प्रेम का पहरा सा.
अब समझ में सब आता है
जो कुछ नित्य कहा करते थे
ज्ञान धर्म उत्थान की बातें
पिताजी सिखलाया करते थे.
उन्हें याद कर गदगद होते
जैसे पावन हो कथा सुहानी
निज मन ही झकझोर रहा है
नयनों में भर आता पानी.
व्यस्त रहे सुख के संचय में
भूले मद में अमृत वाणी
व्याकुल उर अब ढूंढ रहा है
उन कदमों की धूमिल निशानी.
भारती दास ✍️
सुन्दर भाव।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeletebhaut badiya
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति।
ReplyDeleteयोगदिवस और पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।
बहुत बहुत धन्यवाद सर
ReplyDeleteसमय रहते कितने समझ पाते हैं पिता की क़द्र करना उनकी दी शिक्षा को,
ReplyDeleteबहुत अच्छी मर्मस्पर्शी सामयिक रचना
बहुत बहुत धन्यवाद कविता जी
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ReplyDeleteपल बीत गया क्षण बीत गया
यादों का मंजर है ठहरा सा
पुलक भरी सुख का अनुगुंजन
हृदय के अंदर है बिखरा सा.....
पितृ याद में लिखी गई बेहतरीन रचना। आपको पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
आपको भी पुरूषोत्तम जी, बहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteशायद समय रहते पिता का महत्त्व कम ही समझ आता है ... पर पिता पिता है ... याद तो आता है ... बहुत भाव पूर्ण रचना ...
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteअब समझ में सब आता है
ReplyDeleteजो कुछ नित्य कहा करते थे
ज्ञान धर्म उत्थान की बातें
पिताजी सिखलाया करते थे.
सही वक़्त पर सही बातें समझ में आती हैं. भावों से सराबोर रचना.
बहुत बहुत धन्यवाद सर
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