राज घराने की वो
दुलारी
थी सुन्दर सी
राजकुमारी
रूपसी वो अथाह
हुई थी
लेकिन अंधे से
ब्याह हुई थी
अपने पति की ये
लाचारी
भांप चुकी थी वो
बेचारी
पति को देवता मान
चुकी थी
उनका दुःख अपना
चुकी थी
कहीं ये मन भटक
ना जाये
उनसे कोई भूल न
हो जाये
आखों पर पट्टी
बांधी थी
गम उनको ना छू
पायी थी
श्रेष्ठ हुए थे
उनके विचार
अंधी बनना की थी
स्वीकार
इस जग की मोहक
छवि प्यारी
नहीं देखी कोई
दृश्य मनोहारी
अहं भाव निज
त्याग ना पाते
खुद सर्वस्व लुटा
नहीं पाते
छिपा शेष कामना
अंतर में
अनजान सी थी
सायं-प्रातर में
घन-तम की चुनरी
ओढ़ी थी
मायावी दुनिया से
छिपी थी
धन्य हुआ था उनका
जीवन
उपलब्धि थी उनका
समर्पण
बंद आखों से की
आराधना
सार्थक बनी उनकी
प्रार्थना
तप की साधना बनी
मिशाल
नेत्र की ज्योति
बनी विकराल
इतनी तेज भरी
नयनों में
भष्म हो जाये लोग
क्षणों में
सामने आया था
सुयोधन
वज्र समान बना
उसका तन
विधि की लीला रची
हुई थी
दुर्योधन को मौत
मिली थी
गांधारी की आखों
के तेज
कभी नहीं हुआ
निस्तेज.
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