बस गंतव्य को चल
पड़ी थी
भीड़ बड़ी उमड़ी हुई
थी
एक बाबा थे बस
में सवार
व्यक्तित्व था
उनका रौबदार
एक सज्जन जो चुप
बैठा था
बाबा के पहलु से
सटा था
वो अचानक चीख उठा
था
मै लुट गया कहकर
रो पड़ा था
जेब मेरे कट गए
हैं
सारे पैसे लुट गए
हैं
मेरी मेहनतभरी कमाई
बचा न अब तो एक भी पाई
कंडक्टर ने बस को रोकी
होने लगी तलाशी सबकी
बाबा के भी पास थे पैसे
क्षोभ से गर्दन थे झुके से
सिपाही ने बाबा को डांटा
लगा भी दी एक-दो चांटा
ना ही किया उम्र का लिहाज
न रखी उनकी कुछ लाज
बाबा की आँखें भर आई
इस उम्र में हुई जग हंसाई
सारे दिन की कठिन कमाई
कुछ भी मेरे काम न आई
बच्चों ने घर से निकाला
भाग्य ने इज्जत उछाला
इस दुनियां से रुखसत कर
या अल्ला इंसाफ कर
जो सज्जन पैसा ले भागा
तांगे से टकराया अभागा
घोड़े सीने पर चढ़ आया
खून से लथ-पथ हो गयी काया
उसने कहा बाबा को बुलाओ
प्लीज जरा बाबा को लाओ
हाथ जोड़कर उसने बोला
माफ़ करें मै झूठ था बोला
आपके पैसे यहीं पड़े
हैं
खुदा ने मुझको सजा दिये हैं
मौन खड़े बाबाजी रोये
जी भरकर आंसू बरसाये
भगवान सबके साथ न होते
कमजोर बेचारे रोज ही पिटते
प्रभु की लाठी सख्त बड़ी है
न जाने कब किस वक्त पड़ी है.
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