ऐसा पूत युगों में आता
जिस पर गर्व हमें
हो पाता
अपनी मूल्य पहचान बनाता
दुनिया में सम्मान बढ़ाता
आत्मबोध से जोड़े खुद को
बन विन्रम समझाये सबको
कार्य करे सब न करे समीक्षा
श्रम है शक्ति श्रम है परीक्षा।
मात्र समर्पण से ना होता
तन-मन से यूँ जूझना होता
तब होगा विस्तार मिशन का
दुनिया भर के जन जीवन का।
जो समझते जग का सारा
दीन दुखी का करुणा पीड़ा
सार्थक कर्म से हर्षाते हैं
वही लोक यश भी पाते हैं।
भारती दास ✍️
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