Thursday, 20 November 2014

ऐसा पूत युगों में आता


ऐसा पूत युगों में आता
जिस पर गर्व हमें  हो पाता
अपनी मूल्य पहचान बनाता
दुनिया में सम्मान बढ़ाता
आत्मबोध से जोड़े खुद को
बन विन्रम समझाये सबको
कार्य करे सब न करे समीक्षा
श्रम है शक्ति श्रम है परीक्षा।
मात्र समर्पण से ना होता 
तन-मन से यूँ जूझना होता 
तब होगा विस्तार मिशन का
दुनिया भर के जन जीवन का।
जो समझते जग का सारा
दीन दुखी का करुणा पीड़ा
सार्थक कर्म से हर्षाते हैं 
वही लोक यश भी पाते हैं।      
भारती दास ✍️ 

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