Friday, 22 August 2014

....और वो लावारिस हो गया




थक गयी पथ निहारकर
बैठ गयी इंतजार कर
सो गया बच्चा पेट पकड़
कब आयेंगे पापा घर .
सुबह काम पर जाते जल्दी
घर आने में देरी होती
आज तो बस हद ही कर दी
पड़ोसी करते काना-फूसी .
छोटी उमर में घर से भागी
अब जैसे सपनों से जागी
घर समाज में नाक कटा दी
अपनों में बन गयी अभागी .
बेवफा बन वो मुस्काया
हर कुटिल चालें अपनाया
जो बच्चा  संसार में आया
दुःख दरिद्र से नाता पाया .
आज कुछ करना ही होगा
सब यादें मिटाना होगा
इक राह चुनना ही होगा
उससे पीछा छुड़ाना होगा .
बच्चे का दुःख देख ना पाई
माँ से बन गयी काली माई
आँखों में आसूं भर आई
फफक-फफक कर रोई गाई .
दिन भर की सारी कमाई
उसके पति ने क्षण में गंवाई
गैरों के संग रात बिताई
अब पत्नी बन गयी पराई .
रातें हो गयी और भी गहरी
एक कटार हाथों में पकड़ी
अपने पति की फाड़ी अंतड़ी
खुद पुलिस के हाथों जकड़ी .
बच्चा बिलखता रह गया
बाप उसका मर गया
बचपन सिसकता रह गया
और वो लावारिस बन गया .
            
    

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