Tuesday, 13 February 2024

प्रेम दर्शन


संस्कृति हो या दर्शन

साहित्य हो या कला

प्रेम की गूढता अनंत है

ये समझे कोई विरला.

ये चिंतन में रहता है

ये दृष्टि में बसता है

जीवन का सौन्दर्य है ये

अनुभव में ही रमता है.

ये घनिष्ठ है ये प्रगाढ़ है

ये है इक अभिलाषा

विश्वास स्नेह का भाव है

ये है केवल आशा.

ये रिश्ता है ये मित्रता है

ये है विवेक की भाषा

शरीर आत्मा में है समाहित

ये चाहत की परिभाषा.

निर्वाध रूप से है निछावर

ये मृदु मोहक सा बंधन

कर्तव्य बोध से मिलकर ही 

ये करता है संरक्षण.

ढाई -अक्षर प्रेम की गुत्थी

है अपनों का माध्यम

कवच ये बनता हर जीवन का

प्रेम है ऐसा पावन

भारती दास ✍️


8 comments:

  1. पावन है अति प्रेम

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    1. धन्यवाद अनीता जी

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  2. ढाई -अक्षर प्रेम की गुत्थी

    है अपनों का माध्यम

    कवच ये बनता हर जीवन का

    प्रेम है ऐसा पावन

    बहुत ही सुन्दर संदेश देती रचना, सादर नमस्कार भारती जी 🙏

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    1. धन्यवाद कामिनी जी

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  3. गहन भाव सृजन, सुंदर रचना।

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    1. धन्यवाद कुसुम जी

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