संस्कृति हो या दर्शन
साहित्य हो या कला
प्रेम की गूढता अनंत है
ये समझे कोई विरला.
ये चिंतन में रहता है
ये दृष्टि में बसता है
जीवन का सौन्दर्य है ये
अनुभव में ही रमता है.
ये घनिष्ठ है ये प्रगाढ़ है
ये है इक अभिलाषा
विश्वास स्नेह का भाव है
ये है केवल आशा.
ये रिश्ता है ये मित्रता है
ये है विवेक की भाषा
शरीर आत्मा में है समाहित
ये चाहत की परिभाषा.
निर्वाध रूप से है निछावर
ये मृदु मोहक सा बंधन
कर्तव्य बोध से मिलकर ही
ये करता है संरक्षण.
ढाई -अक्षर प्रेम की गुत्थी
है अपनों का माध्यम
कवच ये बनता हर जीवन का
प्रेम है ऐसा पावन
भारती दास ✍️
सुन्दर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteपावन है अति प्रेम
ReplyDeleteधन्यवाद अनीता जी
Deleteढाई -अक्षर प्रेम की गुत्थी
ReplyDeleteहै अपनों का माध्यम
कवच ये बनता हर जीवन का
प्रेम है ऐसा पावन
बहुत ही सुन्दर संदेश देती रचना, सादर नमस्कार भारती जी 🙏
धन्यवाद कामिनी जी
Deleteगहन भाव सृजन, सुंदर रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद कुसुम जी
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