सुनो हे माँ मेरे उर की तान
क्यों मुँह फेरी गैर नहीं हूँ
तेरी हूँ संतान,सुनो हे.....
दुखिता बनकर जीती आई
पतिता बनकर शरण में आई
मुझ पर कर एहसान,सुनो हे......
मोक्ष-दायिनी पाप-नाशिनी
कहलाती संताप-हारिणी
प्रेम का दे दो दान,सुनो हे......
शांति-सद्गति सब-कुछ देती
जन-जन करते तेरी भक्ति
करके हरपल ध्यान,सुनो हे.......
पुण्यमयी तेरी जल-धारा
तूने सगर पुत्रों को तारा
तेरी महिमा महान,सुनो हे.......
तेरी सुमिरन जो भी करते
नर नारी सब मुक्ति पाते
तू शिव की वरदान,सुनो हे.......
भारती दास ✍️
गंगा दशहरा की शुभकामनाएँ । सुंदर सृजन
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता जी
Deleteवाह गंगा दशहरा पर अति सुंदर प्रस्तुति !!
ReplyDeleteधन्यवाद अनुपमा जी
Deleteसुनो हे माँ मेरे उर की तान
ReplyDeleteक्यों मुँह फेरी गैर नहीं हूँ
तेरी हूँ संतान,सुनो हे.....
मां गंगा को समर्पित बहुत ही सुन्दर सृजन,,सादर नमस्कार भारती जी 🙏
धन्यवाद कामिनी जी
Deleteबहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति। बहुत शुभाकामनाएं ।
ReplyDeleteधन्यवाद जिज्ञासा जी
Deleteभक्तिभाव में डूबा सुंदर गीत
ReplyDeleteधन्यवाद अनीता जी
ReplyDeleteदुखिता बनकर जीती आई
ReplyDeleteपतिता बनकर शरण में आई
मुझ पर कर एहसान,सुनो हे......
बहुत ही भावपूर्ण एवं हृदयस्पर्शी गीत।
धन्यवाद सुधा जी
Deleteभावपूर्ण ... माँ के चरणों में समर्पित भाव ... गहरा प्राकतिक सन्देश लिए ...
ReplyDeleteधन्यवाद सर
ReplyDeleteगंगा दशहरा की शुभकामनाएं
ReplyDeleteधन्यवाद सर
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