Monday, 31 August 2020

बरस रहा है मेघ निरंतर

  बरस रहा है मेघ निरंतर

अनवरत आवेग से भरकर

प्रचंड कोई अभियान सी लेकर

निर्बल जीवन प्राण को हरकर.

जल प्लावन से जान सिसकते

प्रलय सिंधु अरमान निगलते

सघन गगन प्रतिदिन बरसते

सुख वैभव की बस्ती डूबते.

आतप वेदना दृश्य डरावना

वीभत्स भयानक भू का कोना

बहती है कातर सी नयना

कहर बाढ़ का छीना हंसना.

मनुज आसरा बह रहा है

निर्वाह सहज ही ढह रहा है

सर्वत्र ये पीड़ा कह रहा है

कर्त्तव्य किसका कम रहा है.

कर्म साधना हो गई है क्षीण

सामर्थ्य हीन साधन विहीन

दिन मुश्किल के रातें मलीन

दूर कब होगा गम ये असीम.

भारती दास







18 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (02-09-2020) को  "श्राद्ध पक्ष में कीजिए, विधि-विधान से काज"   (चर्चा अंक 3812)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद सर

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  3. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 3 सितंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद

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  4. बहुत बहुत धन्यवाद

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  5. वाह! बरसात के अत्याचार और कराहते मानव मन की पीड़ा का सजीव प्रवाह इस शब्द-चित्र में उतर आया है। आभार और बधाई!!!!

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद

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  6. आदरणीया भर्ती दास जी, भाव से भरी रचना!
    कर्म साधना हो गई है क्षीण
    सामर्थ्य हीन साधन विहीन!
    मैंने आपका ब्लॉग अपने रीडिंग लिस्ट में डाल दिया है। कृपया मेरे ब्लॉग "marmagyanet.blogspot.com" अवश्य विजिट करें और अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराएं। सादर!--ब्रजेन्द्रनाथ

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सर

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  7. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद

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  8. मनुज आसरा बह रहा है

    निर्वाह सहज ही ढह रहा है

    सर्वत्र ये पीड़ा कह रहा है

    कर्त्तव्य किसका कम रहा है.

    कर्म साधना हो गई है क्षीण

    सामर्थ्य हीन साधन विहीन
    बहुत सटीक ....
    वाह!!!

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  9. बहुत बहुत धन्यवाद सुधा जी

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  10. बहुत ही सुन्दर ब्लाँग आदरणीया जी

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  11. बहुत बहुत धन्यवाद सर

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