करती हूँ मैं विनय निरंतर
निराकार निर्मल निर्गुण की
शुभता भर दें वेदना हर लें
पवित्र-भूमि की हर कण-कण की.
शुभ्र दीप्त अलोक की लौ से
रोशन कर दें उर का अंतर
रोग शोक परिताप मिटा दें
हर लें सब अभिशाप धरा पर.
हे सर्वज्ञ हे त्रिकालदर्शी
हे समर्थ देव हे गौरीशंकर
मंगल की अविरल वर्षा से
हर्षित कर दें धरती-अंबर.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (05-03-2019) को "पथरीला पथ अपनाया है" (चर्चा अंक-3265) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद सर 🙏
ReplyDeleteधन्यवा
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद