अनुबंध था उत्कर्ष का
सम्बन्ध था दुःख-हर्ष का
व्यापार था खुदगर्ज का
उसका करार भी खो गया.
दिया अनंत सम्मान था
पहचान था अभिमान था
जिसने बना नादान था
उसका करार भी खो गया.
जो रक्त पीता ही रहा
हरवक्त जीता ही रहा
जो दैत्य बन हंसता रहा
उसका करार भी खो गया.
जिसने मिटाया सुख-सुहाग
माता-पिता-बहनों की याद
जिसके ह्रदय में दहका आग
उसका करार भी खो गया.
मधुमय वसंत अनुराग था
कलरव जहाँ उल्लास था
जिसने किया सब नाश था
उसका करार भी खो गया.
सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद नितीश जी
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 27 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
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