बादल पर बादल फिर छाया
मनभावन सावन ऋतू आया
बौछारे ये फुहारे जल की
बूंदे गिरती छम-छम करती
अनगिनत रूपों-रंगों
में
जाने कितने लय-छंदों में
उमड़-घुमड़ कर मेघ बरसते
मौन ह्रदय में हलचल करते
पवन झकोरे चूमते माथ
सिहर से जाते कोमल गात
भर प्राणों में पुलक घनेरी
प्रेम सजाता अंतस नगरी
नैनों में होता सम्मोहन
मन मोहती रुत ये पावन
मखमल सी पसरी हरियाली
कुसुम-कली खिल उठी निराली
रोम-रोम में अनुराग अपार
प्रियतम से करती मनुहार
झूले में बैठी मतवाली
हर्षित होकर देती ताली
सजा के पूजन की शुभ थाली
मंगल-गीत गाती है आलि
उमा-महेश बरसाये प्रीत
सौभाग्य-सजाये हरियाली तीज.
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