शशि-मुख के जैसे वे सुन्दर
समुद्र के तल सम वे गंभीर
धैर्यवान पृथ्वी की भांति
आदर्शवान थे श्री रघुवीर.
माता-पिता-भाई-गुरुजन
सेवक-भृत्य या कोई प्रजाजन
कर्तव्य पालन वो करते हरदम
शुचितामय था उनका जीवन.
विश्वामित्र के संग गये थे
तप-संयम-सेवा किये थे
शिरोधार्य हर कष्ट किये थे
असुर हीन जग को किये थे.
राम-नाम की महिमा व्यापक
कह गये भक्त कवि आराधक
गुणों की खान थे श्री भगवान
प्रजापालक पुरुषोतम श्री राम.
जग ढूंढ़ता है जिनको बाहर
वो बैठे हैं मन के अन्दर
सम आदर-सेवा-अपनापन
गुण जो समाये धैर्य-अनुशासन.
भारती दास ✍️
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