भीनी-भीनी सी लेकर सुगंध
आती गर्मी जाता है बसंत
फूली सरसों पीली-पीली
श्रृंगार धरा की नयी नवेली
सजी-धजी दुल्हन सी धरती
आनंद में डूबी सारी प्रकृति
मनोभावों का मधुर विलास
मोहक-मादक-नशीली मास
छूकर समीर उर करता शीतल
नयी रागिनी बजती हरपल
भावनाओं को करता सराबोर
उमंग के रंग छाता निशि-भोर
फाल्गुन उत्सव लेकर आता
अवसादों को मिटाने आता
दिल से दिल को जोड़ने आता
अंतर्मन को भिगोने आता
बूढों में यौवन भर देने
युवाओं में बचपन ले आने
जोश-उत्साह-उल्लास जगाने
आई होली तन-मन हरसाने.
भारती दास ✍️
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