Monday, 4 November 2013

भाई –दूज


सूर्यदेव की पत्नी छाया
जिन्होंने यम –यमुना को जाया
इक-दूजे में प्यार अपार
खुशियों भरा उनका परिवार
यमराज को प्यारी बहना
सुन्दर सी सुकुमारी बहना
स्नेह से दोनों बढे –पले
अपने पथ पर आगे चले
कई बार करती निवेदन
घर आओ करने को भोजन
हूँ डरावना सूरत वाला
प्राण सबों का हरने वाला
स्नेह से कौन बुलाएगा
प्यार से कौन खिलायेगा
यही सोच घबराते यम
खुद को यूँ बहलाते यम
कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन
यमुना के घर पर आये  यम
देख भाई को हर्षित हुई
ख़ुशी से यमुना चकित हुई
स्नेह अश्रु से भीगा तन मन
यम पूजन कर कराया भोजन
यमुना को वरदान मिला
अमर प्रेम का दान मिला
प्रति वर्ष इस दिन को आना
अपने बहन के घर खाना
भाई का आदर सत्कार
जो बहना करे हर बार
उसके घर वैभव रहे
अकाल मृत्यु का भय ना रहे
परंपरा बन ये दिन आया
भातृ –द्वितीया पर्व कहाया
यम द्वितीया या भाई-दूज
एक ही पर्व के है ये रूप
बहन कामना करती है
मंगलमय हो कहती है
भाई को लम्बी उम्र मिले
राह में हर दम फूल खिले.
‘’भातृ द्वितीया के दिन ही’’    
श्री चित्रगुप्त की पूजा भी
जो करते है लोग सदा
होते दूर भय व विपदा
समुद्र मंथन के समय
लक्ष्मी संग उत्पन्न हुए
पुरुषोतम श्री चित्रगुप्त
कर्म प्रधान श्री धर्मगुप्त
उन भगवान की पूजा होती
हाथ में जिनकी लेखनी होती
कर्मों का लिखते लेखा –जोखा
जाने –अनजाने का धोखा
दवात-लेखनी और पुस्तक
करते पूजा नवाते मस्तक
उनके वंशज कहलाते है
हरदिन शीश झुकातें है

लेखनी पटिटकाहस्तम श्री चित्रगुप्त नमाम्यहम .         

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