Wednesday, 20 February 2019

अहले वतन तू कर ना गम

अहले वतन तू कर ना गम
तेरे पुत्र ने बांधा कफ़न
जिसने किया तुझपर सितम
उसका मिटा देंगे भरम.
हमने तो खाई है कसम
तेरे लिए निकलेगा दम
इच्छाओं का करके दमन
अर्पण करेंगे तन ये मन.
पहलू में हरपल मैं रहूं
कदमों में रखकर शीश यूं
है आरज़ू यही जूस्तजू
दामन में भर दूं मैं लहू.
ना चैन है ना करार है
सीने में दर्द अपार है
अश्कों की बहती धार है
रोती सिसकती बहार है.
क्यों कांपता ये पहाड़ है
खोया कहां हुंकार है
क्या भूल है क्या विकार है
क्यों हार ये स्वीकार है.
दुष्कर्म का ही प्रचार है
साक्षी सकल संसार है
उपचार हो ये पुकार है
करना नहीं उपकार है.

Saturday, 9 February 2019

चिर बसंत फिर घर आये

चिर बसंत फिर घर आये
था सूना ये मन का आंगन
उपहार प्यार का भर लाये
चिर बसंत फिर घर आये...
मैं एकांत में टूट रही थी
गम विषाद से जूझ रही थी
मौन पड़ा था कोना कोना
विवश विकल सब भूल रही थी
उदगार द्वार फिर भर लाये
चिर बसंत फिर घर आये...
पुष्प वृंत पर फिर खिल आया
गीत मधुर मधुकर ने गाया
नव पत्रों से तरु तन दमके
विहग शाख पर मुस्काया
खुमार बहार फिर भर लाये...
उस अतीत की ,अतिशय सुख की
 प्रमुदित दृग की ,प्रफुल्लित गृह की       
सुभग सरल उस मंजू मुख की
अनंत शोक दुःख विस्मृत कर दे
अपार दुलार फिर भर लाये
चिर बसंत फिर घर आये...
करती हूं शिकवा तूल ना देना
फिर कुसुमाकर भूल ना जाना
जीवन के इस दोपहरी में
फिर सुख सागर रुठ ना जाना
मनुहार उदार फिर भर लाये
चिर बसंत फिर घर आये...

Saturday, 26 January 2019

मातृभूमि के लिये


पर्ण-पर्ण पर लहर-लहर पर
उन्मुक्त-उन्नत शिखर-शिखर पर
उल्लासता की बिखरी आभा
धरा-गगन में मचल-मचल कर.
भारत की आत्मा जागी जब  
आशाओं का संचार हुआ
अभिव्यक्ति का माहौल बना
प्रजातंत्र का अधिकार हुआ.
गँवा दिया था गौरव-गरिमा
उपेक्षित जीवन था मजबूर
नारी और निर्बल पर होता
अत्याचार हरदम भरपूर.
विकल दृगों में करुणा होती
दयनीय था वात्सल्य दुलार
दर्द-ग्लानि से दग्ध ह्रदय था
अनुचित था विकृत व्यवहार.
इसी भूमि पर जन्म लिये थे
मनमोहन मुरलीधर श्याम
जिनकी मुख से गीता निकली
दिए जिन्होंने ज्ञान तमाम.
थे आचार्य कभी विश्व में
योग्यता जिनकी अभिराम
हो गौरवमय वही संस्कृति
पावनता हो वही तमाम.
मातृ-भूमि के लिये जो
प्राण दे सुर तुल्य है.
देश के हित के लिये
सद्कर्म का भी मूल्य है.         

  

Saturday, 22 December 2018

ये शीत रैन करते बेचैन

सूर्यदेव हो चले हैं अस्त
निज रश्मियों को लिए समेट
प्रभात का चिन्ह रहा न शेष
रातों ने अपनी सजायी सेज.
हुए दूर सघनता में विलीन
नभ की अनंतता है असीम
दिनकर की किरणें हुई है क्षीण
आभा हुई मुख की मलीन.
ये दिवस ढला दीपक जला
आलोक घर घर में भरा
द्वारों पर मौन गहरा रहा
गलियों में सन्नाटा बढ़ा.
रैन बसेरा बनकर बड़े
है अनगिनत तरुवर खड़े
आश्रय विहीन आकर ठहरे
है समीर सांझ की दुःखभरे.
ये शीत रैन करते बेचैन
हरते है चैन जगते है नैन
कंपित है तन विचलित है मन
दंडित हुआ जैसे चमन.
रजनी कुपित है भयावनी
बैठी है छुप के तरुवासिनी
कहती है घर की भामिनी
निष्ठुर बड़ी है यामिनी.

Sunday, 9 December 2018

शिशिर धूप जब आती है


ऊषा अपनी पंख पसारे
कोमल-कोमल कुसुम-कली पर
ओस की बूंदें लगते प्यारे.
निशीथ सबेरा है सुहावना
बिखरी धरा पर स्वर्ण-ज्योत्सना
पुलक भरी मादक भरी
ह्रदय में भरती स्नेह भावना.
निशा पराजित हो जाती है
होकर मौन वो सो जाती है
मंद-मंद हंसता है प्रभात
शिशिर धूप जब आती है.
सांय-सांय बहता है पवन
सिहर-सिहर उठता है बदन
रवि-किरण तन को छूती है
अनुरागी हो जाता है नयन.
नन्हें-नन्हें श्वान-पुत्र
कूं-कूं करता है नेत्र-मूंद
इन पशुओं का नहीं है गेह
स्नेहिल-ऊष्मा से पाता सुख.
नीरवता बन जाती सहेली
निर्ममता करती अठखेली
हंसता-गाता क्षण ये कहता
ये जीवन है एक पहेली.     
     

Wednesday, 24 October 2018

शरदचंद्र की सुहानी रात


शरदचंद्र की सुहानी रात
लगती प्यारी-मनोहारी आज ....
धवल-चन्द्रिका झूम रही है
हंसी अधर पर गूंज रही है
उजली-उजली ये नशीली रात
लगती प्यारी-मनोहारी आज ....
शुद्ध शीतल निष्पाप चाँदनी
शांत सुभग सौन्दर्य मोहिनी
लेती समेत कर्कश विषाद
लगती प्यारी-मनोहारी आज ....
स्निग्ध प्रेम की सौम्य सी धारा
हरती है व्याकुल सी पीड़ा
राधा-रमण की सुखभरी रात
लगती प्यारी-मनोहारी आज ....
धरा-गगन की मूक मनुहार
एक-दूजे को रहे निहार
ह्रदय से होती ह्रदय की बात
लगती प्यारी-मनोहारी आज ....
तृष्णा भरे थके नयन में
श्रम वेदना भूलते क्षण में
हर्षित मुदित है मन और गात
लगती प्यारी-मनोहारी आज    

Tuesday, 11 September 2018

शिव-पार्वती वंदन


शत-शत नमन अर्पित सुमन
शंकर-प्रिया मनमोहिनी
सुन्दर-वसन शोभित-बदन
पंकज-नयन सम्मोहिनी.
सुख-भाग्य दे सौभाग्य दे
अनुराग दे वरदायिनी
हिम-नंदिनी हर-संगिनी
वन्दे सकल शुभ दायिनी.
हे महेश-भामिनी सुखद-यामिनी
कैलाश-श्रृंग निवासिनी
भव-मोचिनी शिव-योगिनी
हे दक्ष-यज्ञ विनाशिनी.
पिनाकधारिणी हे भवानी
अनंत-रूप नारायणी
सर्व-विद्या शस्त्र-हस्ता
बलप्रदा ब्रह्म-रूपिणी.  
शैल-वनिता हरित-आलिका
हे गणेश-माता महातपा
मुनि वन्दिता जग-पालिका
नमामि पुरारी संग सदा.
सुहाग अटल हरपल रहे
दीजिये शुभ-आशीष
क्लेश-कष्ट हर लीजिये
नत मस्तक है शीश.

✍️भारती दास


Saturday, 25 August 2018

अभिनंदन है उर से वंदन


अभिनंदन है उर से वंदन
आया फिर से रक्षा बंधन....
करूण-नयन से नीर ना बहते
संग हमारे भाई होते
याद उन्हें करते हैं हर-क्षण
आया फिर से रक्षा बंधन....
था खुशियों से हँसता आँगन
एक-दूजे में था अपनापन
था अनुरागी प्यारा बचपन
आया फिर से रक्षाबंधन....
दूर रहे या पास में हो सब
दुआ अनेकों तुमसे है रब
हो दीर्घायु भाई का जीवन
आया फिर से रक्षाबंधन....        


Sunday, 19 August 2018

जग को छोड़ चले अटल

जग को छोड़ चले अटल
मन सबका करके विकल
उर का स्पंदन टूट गया
बंधन सारे छूट गया.
शोकाकुल है देश का घर-घर
रो उठा धरती और अंबर
वे थे ओजस्वी कवि प्रखर
जननायक वक्ता मुखर.
था पौरुष उनमें ओतप्रोत
बहता हृदय से नेह का स्त्रोत
तपस्वी सा सुन्दर व्यवहार
व्यक्तित्व था उनका सरल उदार.
सुनहली रातों की छाया
अंधकार की घन सी माया
मर्म वेदना जो था समाया
थककर सोया शिथिल सी काया.
नहीं हुआ कभी काल किसी का
पर कांपा होगा कर भी उसका
देश का कर्ज चुका गये
वो भारत पुत्र रूला गये.
जो रहे सदा ही सत्य चिरन्तन
नहीं किये कभी निर्मम क्रंदन
लडे़ अकेले जीवन का रण
नमन उन्हें  करता जड़ चेतन.
भारती दास

Wednesday, 15 August 2018

यह देश हमारा भारत वर्ष


ये देश हमारा भारत वर्ष
अद्भुत है इसका उत्कर्ष
उत्तर में है हिम का ताज
दक्षिण में सागर का राज
पूरब से आती है हर दिन
मनभावन सुखमय प्रभात 
है इसी भूमि पर अपना स्वर्ग
        यह देश हमारा भारत वर्ष.....     
सदियों से ही दुःख है झेले
मुगलों ,अंग्रेजों के झमेले
सबने इसको लूटा-मसला
पैरों से रौंदा और कुचला
सहती रही ये दर्द सहर्ष
यह देश हमारा भारत वर्ष....
बाजी लगाई प्राणों की अपने
एक से बढ़कर बलिदानी ने
भारत के दमन को बचाया
शीश कटा सम्मान दिलाया
घुट-घुट कर जीना है व्यर्थ
यह देश हमारा भारत वर्ष ....
दया धर्म से शोभित धरती
ऋषि मुनि सा देव विभूति
उदार मन और शांत प्रकृति
उन्माद भरा है द्वेष-दर्प
यह देश हमारा भारत वर्ष....
वीर भरत महाराणा  जैसे
सुभाष भगत सयाना जैसे
कोई वीर नहीं है शेष
जो धारण करले राम का वेश
छोड़ दिया करना संघर्ष
यह देश हमारा भारत वर्ष....
बापू की नीति याद नहीं है
दुःख नहीं फरियाद नहीं है
भारत पुत्रों को करके याद
आजादी दिवस मनाये आज
भरके मन में उद्गार हर्ष....
यह देश हमारा भारत वर्ष.