बेरोजगार निष्काम बनाया
प्राणहीन निष्प्राण बनाया
खूब रुलाया खूब सताया
घर-घर में संकट ही लाया
देकर ढेरों ही दुख टीस
जा रहा है वर्ष ये बीस....
कुछ शर्म है कुछ ग्लानि है
जितने दिये लाभ हानि है
मनमर्जी कुछ मनमानी है
लापरवाही कई, शैतानी है
झुकाकर अपना ही शीश
जा रहा है वर्ष ये बीस....
फिर उम्मीद की बंधेगी डोर
फिर से होगी मोहक भोर
मंदिर में घंटे की शोर
होठों पर स्मित विभोर
होगी फिर खुशियों की जीत....
जा रहा है वर्ष ये बीस....
प्रीती-नीति का भाव विधान
मस्जिद में आयत की तान
स्वजन नेह का मान गुमान
फिर से हंसेगा हिंदुस्तान
विहग मधुर गायेगी गीत
जा रहा है वर्ष ये बीस....
भारती दास ✍️
Tuesday 29 December 2020
जा रहा है वर्ष ये बीस
Thursday 24 December 2020
कर्म ही जीवन गति हो
प्रतिशोध जिसके मन भरा
उसका कहां होता भला
अवसाद में पल-पल गला
कब चैन उसको है मिला.
भीष्म जिनके शौर्य की
गाथा सुनाती है मही
अर्जुन की ख्याति क्षेत्र की
गुंजित पताका भी ढही.
रक्त से धोयी गयी थी
द्रोपदी के केश को
भेंट रण की चढ गये थे
बैर ईर्ष्या द्वेष वो.
ना जोश था ना हर्ष था
नरमुंड का अवशेष था
उस जीत के आगोश में
इक क्षोभ केवल शेष था.
मन पर नही तन पर भी शांति
सुख की वृष्टि करती है
सौम्य स्नेह की रश्मि से
संताप मति का हरती है.
प्रभु ने दिये हैं सुख सभी
अन्न नीर धरती पर यहीं
अंत होता है नहीं कभी
लोभ लालच का कहीं.
तप त्याग ऐसी शक्ति है
जिसको सदा जग मानता
आत्मबल से जूझकर भी
जो कभी ना हारता.
स्वाभिमान से बढते चले
अभिमान ना ही दंभ हो
कर्म ही जीवन गति हो
यही ध्येय हो यही मंत्र हो.
Saturday 12 December 2020
कवि मन यूं विचलित न होना
कवि मन यूं विचलित न होना
|