Wednesday 31 March 2021

मनाते मूर्ख दिवस अभिराम

 


मूर्ख बनाते या बन जाते
मखौल उड़ाते या उड़वाते
दोनों ही सूरत में आखिर
हंसते लोग तमाम
छेड़ते नैनों से मृदु-बाण....
मन बालक बन जाता पलभर
कौतुक क्रीड़ा करता क्षणभर
शैशव जैसे कोमल चित्त से
भूलते दर्प गुमान
होते अनुरागी मन-प्राण....
सरल अबोध उद्गार खुशी का
हंसता अधर नादान शिशु सा
क्लेश कष्ट दुख दैन्य भुला कर
सहते सब अपमान
देते शुभ संदेश ललाम....
मूर्ख दिवस का रीत बनाकर
सुर्ख लबों पर प्रीत सजाकर
मनहर हास पलक में भरकर
गाते खुशी से गान
मनाते मूर्ख दिवस अभिराम....
भारती दास ✍️ 

 

 

Saturday 27 March 2021

मै कृतज्ञ हूं हे परमेश्वर

 

रुके-रुके से थके-थके से
कदम जोश से बढ़ेंगे फिर से
कई विघ्न के शिला पड़े थे
समस्त तन-मन हंसेंगे फिर से.....
तड़प-तड़प कर सहम-सहम कर
रात-दिन यूं ही कट रहे थे
उम्मीद आश की लिये पड़े थे
वासंती पुष्पें खिलेंगे फिर से.....
इंद्रधनुष की बहुरंगों सी
विचरते चित्त में भाव कई सी
द्वन्द के साये में जी रहे थे
सुनहरे पल-क्षण मिलेंगे फिर से.....
मैं कृतज्ञ हूं हे परमेश्वर
धन्यवाद करती हूं ईश्वर
अंधकार पथ में बिखरे थे
छंद आनंद के लिखेंगे फिर से.....
भारती दास



 

Sunday 7 March 2021

मैं धीर सुता मैं नारी हूं

 


सलिल कण के जैसी हूं मैं
कभी कहीं भी मिल जाती हूं
रीत कोई हो या कोई रस्में
आसानी से ढल जाती हूं.
व्योम के जैसे हूं विशाल भी
और लघु रूप आकार हूं मैं
वेश कोई भी धारण कर लूं
स्नेह करूण अवतार हूं मैं.
अस्थि मांस का मैं भी पुतला
तप्त रक्त की धार हूं मैं
बेरहमी से कैसे कुचलते
क्या नरभक्षी आहार हूं मैं.
अर्द्ध वसन में लिपटी तन ये
ढोती मजदूरी का भार हूं मैं
क्षुधा मिटाने के खातिर ही
जाती किसी के द्वार हूं मैं.
मैं धीर सुता मैं नारी हूं
सृष्टि का श्रृंगार हूं मैं
हर रुपों में जूझती रहती
राग विविध झंकार हूं मैं.
भारती दास