Saturday 29 July 2023

हूं अंतिम अरुण क्षितिज का

 एक पिता ने कहा खेद से

विषम बहुत है सूनापन

नीरव-नीरव वृद्ध नयन यह

खोज रहा है अपनापन.

भूल गया क्या, याद है कुछ भी

था तेरा भोला सा बचपन

नेह वही पाने को मचलता

बूढ़ा सा ये तन-मन हरदम.

भार वेदना का ढोया था

जब नन्हें थे तेरे कदम

तड़प-तड़प से मैं जाता था

जब बहता तेरा अश्रु-कण.

चिर आकांक्षा निष्फल इच्छा

अथाह असीम है व्याकुलतापन

अवसाद अनंत है अकथ विषाद है

व्यर्थ विफल है एकाकीपन.

हूं अंतिम अरुण क्षितिज का

आलोक हीन वैभव विहीन 

विकल दिवाकर डूबता जैसे

मुख मलिन अनुराग हीन.

भारती दास ✍️

Saturday 22 July 2023

फिर-फिर घिर-घिर जाती नारी

 

फिर-फिर घिर-घिर जाती नारी

रक्त बहाती जाती बेचारी

तृषित कंठ में विष का प्याला

प्राण गंवाती जाती नारी

फिर-फिर घिर-घिर जाती नारी....

आंसू से भीगे आंचल में

विप्लव भर लेती हरपल में

शापित जैसा जीवन लेकर

अपराधी सी जीती नारी

फिर-फिर घिर-घिर जाती नारी....

कब हंसती कब रो लेती है

क्या पाती क्या खो देती है

बस आहुति देती रहती

निर्मल पावन मन की हारी

फिर-फिर घिर-घिर जाती नारी....

व्यथा भार संताप को ढोती

निशि-वासर पीड़ा में होती

घायल तन-मन करता रहता

अधम नीच और दुराचारी

फिर-फिर घिर-घिर जाती नारी....

भारती दास ✍️



Saturday 15 July 2023

बरसो सावन मनभर बरसो

 बरसो सावन मनभर बरसो

शिव के नील-ग्रीवा पर बरसो

बेला गुलाब चंपा पर बरसो

पेड़ों के झूमते शाख पर बरसो

खगों के गाते पाख पर बरसो

बरसो सावन मनभर बरसो....

रज के हर कण-कणमें बरसो

मृदु गुंजन कर आंगन में बरसो

चंचल मुख आंचल में बरसो

नन्हे-नन्हे करतल में बरसो

बरसो सावन मनभर बरसो....

पर्वत मैदान नदी में बरसो

झाड़-फूस की कुटी में बरसो

भीख मांगती मुट्ठी में बरसो

भावविहीन कुदृष्टि में बरसो

बरसो सावन मनभर बरसो....

भारती दास ✍️



Saturday 8 July 2023

आंसू

 आँसू की क्या दूं परिभाषा

इसकी नहीं है कोई भाषा

गम में, दुःख में, सुख में सब में

आहत होती ये जब तब में

याद आये जो बीते कल की

तो बस झट से आखें छलकी

किसी से जब कुछ कह नही पाए

आँसू मन की व्यथा बताये

समर्पण में छलक जाता 

सुहाने पल में हँस देता 

दुआ में भी ये रहता है

दया के साथ जीता है

नयन से जब भी बहता है

विधाता की ये श्रद्धा है

खुदगर्जी नहीं होती इसकी

सादगी हरदम इसमें होती

कुछ भी हो पर समझ यही है

हर पल सबके साथ वही है.

भारती दास ✍️