Sunday 21 February 2016

प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी



सद्गुण ही पहचान बताता
जाति से कोई महान न होता
किसी भी भूमि में खिले हो फूल
खुश्बू से जग को महकाता.
वो यवनकाल था भीषणतम
उत्पात अनेकों था गहनतम
अपमान भयंकर था उत्पीड़न
विवश-विकल था हर मानव मन.
संत शिरोमणि हुए थे रविदास
समकालीन उनके थे कबीर दास
आस्था जनता की थी निराश
संत मतों पर टिकी थी आस.
संघर्षों से ही प्रारंभ हुआ
जीवन उनका आरम्भ हुआ
ओछी नीची जाति सुन-सुन
चित में उदय वैराग्य हुआ.
चमड़े के जूते बनाते थे
ईश का वंदन करते थे
कहते उन्हें अछूत सभी
वो मानव धर्म निभाते थे.
भक्ति का अधिकार नहीं था
कुरीतियों का प्रतिकार नहीं था
समाज के वे भी अभिन्न अंग हैं
ये कुलीनों को स्वीकार नहीं था.
रामानंद उनके गुरु हुए थे
कुटिया में उनके पधारे थे
मीरा उनकी शिष्या हुई थी
संतों में सबके वो प्यारे थे.
‘’ प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी
जाकी अंग-अंग प्रीत समानी
जाति-पांति पूछे नहीं कोई
हरि को भजे सो हरि का होई ‘’
प्रेरणादायी है उनके उपदेश
है भक्ति के पावन उन्मेष
सत्य-निष्ठा-कठिन-परिश्रम
बना दिया उन्हें संत विशेष.                   

Thursday 11 February 2016

हे हंसवाहिनी शारदे



 हे हंस वाहिनी शारदे
अज्ञानता से उबार दे , हे .............
सुन्दर छवि शोभा अपार
नैनों में छाई है खुमार
इक बार माँ तू निहार दे
अज्ञानता से उबार दे , हे............
तू श्वेत पद्दम विराजती
हस्त वीणा धारती  
वरदंड की झंकार दे
अज्ञानता से उबार दे , हे ...............
जग की दशा है दीन-हीन
मानव हुआ है पथविहीन
शुभता-भरी माँ विचार दे
अज्ञानता से उबार दे , हे ...............
हे अम्ब अब ना विलम्ब कर
सब भूल को जगदम्ब  हर
कर अपना तू माँ पसार दे
अज्ञानता से उबार दे
हे हंस वाहिनी शारदे

Wednesday 3 February 2016

कृष्ण की बांसुरी



कृष्ण के अधर पर
जती है वंशी मधुर
मन को मोहती है स्वर
प्रेम की उठती है लहर.
सौभाग्य को निहारती
भाग्य को सराहती
कृष्ण की ये बांसुरी
अनंत प्रेम से भरी.  
टुकड़ा थी वो बांस की
अस्तित्व भी ना खास थी
प्राणों की न परवाह की
हाथों में खुद को सौंप दी.
जीवन ही बदल गया
नयन ख़ुशी से भर गया
साध पूरी हो गयी
अराध्य  संग जुड़ गयी.
असंख्य कष्ट झेलकर
लोहे से तन को छेदकर
स्व-मूल को मिटा दिया
इक रूप नया दे दिया.
श्याम की कृपा बनी
होठों से उनकी जा लगी
सुख-दुःख मर्म में बजी
धर्म-कर्म में सजी.
गोवर्धन गिरधारी गिरधर
धुन सुधामय भरते जी भर
धन्य हुई वो जीवन भर
माधव कहलाये वंशीधर.