ऊषा अपनी पंख
पसारे
कोमल-कोमल
कुसुम-कली पर
ओस की बूंदें
लगते प्यारे.
निशीथ सबेरा है
सुहावना
बिखरी धरा पर
स्वर्ण-ज्योत्सना
पुलक भरी मादक
भरी
ह्रदय में भरती
स्नेह भावना.
निशा पराजित हो
जाती है
होकर मौन वो सो
जाती है
मंद-मंद हंसता
है प्रभात
शिशिर धूप जब
आती है.
सांय-सांय बहता
है पवन
सिहर-सिहर उठता
है बदन
रवि-किरण तन को
छूती है
अनुरागी हो
जाता है नयन.
नन्हें-नन्हें
श्वान-पुत्र
कूं-कूं करता
है नेत्र-मूंद
इन पशुओं का
नहीं है गेह
स्नेहिल-ऊष्मा
से पाता सुख.
नीरवता बन जाती
सहेली
निर्ममता करती
अठखेली
हंसता-गाता
क्षण ये कहता
ये जीवन है एक
पहेली.
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