Sunday 9 December 2018

शिशिर धूप जब आती है


ऊषा अपनी पंख पसारे
कोमल-कोमल कुसुम-कली पर
ओस की बूंदें लगते प्यारे.
निशीथ सबेरा है सुहावना
बिखरी धरा पर स्वर्ण-ज्योत्सना
पुलक भरी मादक भरी
ह्रदय में भरती स्नेह भावना.
निशा पराजित हो जाती है
होकर मौन वो सो जाती है
मंद-मंद हंसता है प्रभात
शिशिर धूप जब आती है.
सांय-सांय बहता है पवन
सिहर-सिहर उठता है बदन
रवि-किरण तन को छूती है
अनुरागी हो जाता है नयन.
नन्हें-नन्हें श्वान-पुत्र
कूं-कूं करता है नेत्र-मूंद
इन पशुओं का नहीं है गेह
स्नेहिल-ऊष्मा से पाता सुख.
नीरवता बन जाती सहेली
निर्ममता करती अठखेली
हंसता-गाता क्षण ये कहता
ये जीवन है एक पहेली.     
     

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