Friday 24 September 2021

पितृ स्मृति भी इक भक्ति है

 

हिन्दू धर्म में है अटूट विश्वास

होता है जीवन मृत्यु पश्चात

पितृ पक्ष के पावन दिनों में

पितृ पूजन है बेहद खास.

श्रद्धा सुमन अर्पण करते हैं

जलांजलि तर्पण करते हैं

साथ बिताये उन पल क्षण को

विह्वल हो स्मरण करते हैं.

कर्मकांड नहीं होता पाखंड

करते महसूस अनुपम आनंद

जरूरत मंद को शामिल करके

दान  देते  हैं श्रद्धा वंत.

थे दानवीर महावीर कर्ण

जीवनभर बांटे थे वे स्वर्ण

लेकिन अपने पूर्वजों का

नहीं किये थे श्राद्ध कर्म.

वे अपना दायित्व निभाने

परिजन को श्रद्धांजलि देने

वे पृथ्वी पर पुनः आये थे

पार्वण व्रत का पालन करने.

पौराणिक ये कथाएं कहती

पितृ स्मृति भी है इक भक्ति

पूर्वजों की पुण्य तिथि पर

श्रद्धा नमन की है ये पद्धति.

सत्य यही धर्म ग्रंथ कहे

संकल्प सदा हरवक्त रहे

आडंबर ना माने इसको

कर्म हमेशा ही श्रेष्ठ रहे.

भारती दास ✍️

Saturday 18 September 2021

नारी की महता

 

नारी परिवार की मुख्य धूरी है इसके बिना किसी परिवार की कल्पना कभी नहीं की जा सकती.परिवार की स्थिति-परिस्थिति क्या है कैसी है इसकी जिम्मेदारी उस परिवार की नारी पर ही है परन्तु स्वतंत्र निर्णय लेने का अधिकार उसे नहीं मिलता.

अपने परिवार को समृद्ध करने के लिए परिश्रम करती है, प्रार्थनायें-व्रत और उपवास करती है.वो कई भूमिकाओं में जीवित होती है ----- बेटी ,बहन ,पत्नी और माँ इत्यादी हर भूमिकाओं में स्नेह दुलार और ममता लुटाती है,बेटी के रूप में माता-पिता का गौरव बढाती है,बहन के रूप में भाई को सहयोग करती है,पत्नी के रूप में पति के दुःख-सुख की सहभागिनी होती है तथा अपने धर्म का पालन करती है.माँ के रूप में अनगिनत कष्ट और पीड़ा सहकर एक नए अस्तित्व को आकार देकर नए जीवन को संवारती है.

जिस घर में स्त्री के किसी भी रूप का अभाव होता है उस अभाव को सहज ही महसूस किया जा सकता है.घर को संभालने वाली परिवार के हर सदस्य की सेवा करने वाली सबके सुख दुःख का ध्यान रखने वाली स्त्री घर की सौभाग्य लक्ष्मियाँ ही तो होती है.परन्तु आधुनिकता के अभिशाप से ग्रसित लोग उनके सेवा भाव व कार्य के महत्व को नजर अंदाज करते है उन्हें कमतर आंकते हैं.ऐसी सोच वाले घरेलू स्त्री को प्रतिभाहीन समझते हैं.उनके विचार से वही नारी श्रेष्ठ है जो नौकरी करती है,धन कमाती है अर्थोपार्जन में पुरुष का हाथ बंटाती है.सच तो यह है कि घर की देख भाल करने वाली,बच्चों के शील संस्कार और शिक्षा पर ध्यान देने वाली नारी का महत्त्व कभी कम नहीं हो सकता.जीवन के संचालन में धन महत्वपूर्ण है ये हमसब जानते हैं लेकिन धन ही सब कुछ हो ये सही नहीं है.

 घरेलू नारी भले ही कोई कमाई नहीं करती हो परन्तु घर के अनगिनत कामों को करके पैसा भी बचाती है और घर में ख़ुशी का माहौल बना पाती है.घर की साफ-सफाई करना, नाश्ता-खाना बनाना,कपड़े धोना,बच्चों को पालना व परवरिश करना आसान नहीं है साथ में शील-संस्कार और संवेदना की बातें भी करना तो फिर उनकी हैसियत को कम आंकना कहां की बुद्धिमानी है.

घरेलु नारी के काम-काज के बारे में यही सोचते हैं कि उसे ये सब हर-हाल में करना है जिसके लिए उसे स्नेह और सम्मान नहीं मिलता है. लोगों की इस सोच की वजह से वो मानसिक और शारीरिक दोनों ही रूप से पल-पल आहत होती है.

व्यापक और गहन परिप्रेक्ष्य में विचार करने पर यही निष्कर्ष निकलता है कि परिवार व समाज का नींव नारी के उन्ही कामों पर टिकी है जो कही पर दर्ज नहीं होता.ग्रामीण जीवन में नारी के योगदान के बिना कृषि कार्य संभव ही नहीं है.कहीं-कहीं देखने को मिली है कि शिक्षित नारियों ने अपनी उच्च शिक्षा के वाबजूद सोच समझकर हाउस वाइफ बनना स्वीकार किया है ताकि वे अपने घर-परिवार को पर्याप्त समय दे सके,बच्चों के भविष्य बना सके.वे घर-परिवार के रोजमर्रा के जीवन को बेहतर बनाने के लिए अपनी शिक्षा का सदुपयोग कर अपना मूल्यांकन कर सके. अतः लोग और समाज नारी के कार्य को समझे अपनी मानसिकता बदले जिससे कई समस्यायें यूँ ही सुलझ जाएगी.अधिकतर लोग ये तो जरुर मानते हैं कि घर-परिवार की शोभा नारी ही है जो शक्ति-रूपिणी,ज्ञान-रूपिणी व लक्ष्मी-रूपिणी होती है.                                                            

विमल-भावना दृष्टी से झरती 

तृप्त मोह ममता से करती

सेवा संयम शिक्षण देती  

पावन जिसकी चिन्तन होती 

विपदाओं को थामके चलती                        

पलकों पर सावन को रखती  

नैनों में सपनो को सजाती 

उर सागर से प्रेम बहाती

वही नारी शक्ति कहलाती 

चिर वंदिता सदा वो होती.

भारती दास ✍️


Sunday 12 September 2021

 मैं हिन्दी हूं मैं हिन्दी हूं

भारत के भाल की बिन्दी हूं

जैसे सूरज चांद चमकते

वैसे कपाल पर सजती हूं

मैं हिन्दी हूं मैं हिन्दी हूं....

रुप सरस्वती अन्नपूर्णा सी

हंसी है मनहर मां लक्ष्मी सी

मैं सुंदर शोभित लगती हूं

मैं हिन्दी हूं मैं हिन्दी हूं....

गिरि शिखर की महिमा जैसी

ऋषि मुनि की वेद ऋचा सी

हर मुख से भाषित होती हूं

मैं हिन्दी हूं मैं हिन्दी हूं....

संस्कृत है मेरी जननी

मै हूं उसकी प्यारी भगिनी

मैं दिलों में सबके रहती हूं

मैं हिन्दी हूं मैं हिन्दी....

अनपढ गंवार की बोली हूं

शिक्षित की हंसी ठिठोली हूं

मैं प्रेम ही प्रेम समझती हूं

मैं हिन्दी हूं मैं हिन्दी....

भारती दास ✍️

हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं


Friday 3 September 2021

शिक्षक दिवस

 

राधा-कृष्णन के जन्म-दिन पर

शिक्षक दिवस मनाते हैं 

उनके सुन्दर सद्चिन्तन से 

जन-जन प्रेरणा पाते हैं.

श्रेष्ठ चिन्तक और मनीषी 

आदर्श शिक्षक थे महान

शिक्षा की क्रांति लाने में

अहम् था उनका योगदान.

सामान्य नहीं होते हैं शिक्षक 

वो होते हैं शिल्पकार

गीली मिटटी को संवारनेवाला

जैसे होते हैं कुंभकार .

शिक्षा का ये रूप नहीं है 

हो केवल अक्षर का ज्ञान 

पथ के तिमिर मिटाने वाले

शिक्षक होते ज्योति समान.

संयम सेवा अनुशासन का

वो देते हैं सदा प्रशिक्षण 

जीने की वो कला सिखाते 

सहज-सरल बनाते जीवन. 

शिक्षक होते पथ प्रदर्शक 

वो होते मन के आधार 

मानव-मूल्यों को सिंचित करके

उर में भरते सुभग विचार.

शिक्षण के महत्त्व को समझे 

सार्थक हो इनकी पहचान    

बस प्रतीक का पर्व बने ना

पावन हो शिक्षक की शान.

भारती दास ✍️

शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं