Thursday 30 July 2015

व्यास-गुरु-पूर्णिमा



अक्षर बोध ही नहीं कराते
वो  देते हैं  शक्ति का पूंज.
जीवन भर का चिंतन देते,
भरते चेतना का अनुगूँज.
गुरु रूप नारायण होते,
जो हरते पथ के अंधकार.
पतन-पराभव की पीड़ा से,
वो लेते तत्काल उबार.
देह शिष्य है प्राण गुरु है,
मन शिष्य तो गुरु विचार.
संबंधों की अनुभूति में,
गुरु-शिष्य का  है आधार.
राम-कृष्ण पुरुषार्थ बनाया,
और विवेका सा विद्वान.
ऐसे समर्थ गुरु को नमन है,
जो करते हैं पोषित सद्ज्ञान.
कुरुक्षेत्र-रणक्षेत्र बना था,
जहाँ गवाये लाखों जान.
रक्त ही रक्त का प्यासा बनकर,
ले लिए थे अपनों के प्राण.
पद-पंकज में वंदन उनको,
जिसने लिखे थे ग्रन्थ महान.
उनके ज्ञान की रश्मि से ही,
देश है अपना प्रकाशवान.     
                
       

Friday 24 July 2015

आषाढ़ी संध्या घिर आई



श्याम रंग घन नभ में छाया
आषाढ़ का मास सघन हो आया
वर्षा का परिचित स्वर सुनकर
नाच रहा मन झूम-झूम कर
पादप-विटप लता-तरुओं पर
दूर-दूर बिखरे-सूखों पर
उमड़-घुमड़ कर मेघ ये बरसा
प्यासी धरती का मन हर्षा
घिरे हुए है घन कजरारे
मनमोहक सुन्दर ये नज़ारे
झड़ी लगी है कितनी मनहर
बरस रहे हैं बादल झड़-झड़
बारिश के मनभावन पल में
विरहानल है कोलाहल में
दामन छूकर पवन झकोरे
उन्माद भर रहा मन में मेरे
मेरा मन पंछी सा चहके
उर-उपवन में सुमन सा महके
अभिलाषा है इन नैनन की
मोहक माया देखूं प्रकृति की
कम्पित होता है अंतर्मन
होता है कुछ ह्रदय में पुलकन
शर्माती सकुचाती आई
भाव अनेकों जगाती आई
श्यामल नेह लुटाती आई
आषाढ़ी संध्या घिर आई.           

Friday 17 July 2015

रथ निकला नन्द दुलारे की



धूम मची है झूम उठी है,
धरती गगन सितारे भी .
धर्म का  रथ सज-धज कर निकला ,
अपने नन्द दुलारे की .
बलदाऊ के संग में बैठी,
बहन सुभद्रा प्यारी भी,
हर्षित जन है पुलकित मन है,
बीती रात अंधियारी की .
मंद-मंद होठों पर हंसी है,
जैसे खिलती कुसुम-कली की .
एक झलक पा लेने भर की,
नयन झांकती गली-गली की .
स्वागत करने को है आतुर,
प्रकृति कृष्ण मुरारी की .
भक्तों के दुःख हरनेवाले,
गोवर्धन गिरधारी की .
नभ से सुमन बरसता जैसे,
वैसी बरस रही है फुहार .
धरती का मुख चूम-चूम कर,
बह रही शीतल ये बयार .
श्रद्धा-भरी ऐसा  ये क्षण है,
पुलक-भरी भक्ति सबकी .
आस्था में इतनी शक्ति है,
प्यास बुझी है दृष्टि की .
देश की पावन माटी अपनी,
जिसकी संस्कृति है अपार .
जन-जन में उत्साह जगाने,
रथ निकला  है अबकी बार .               

Friday 10 July 2015

वाणी ही जीवन सार है



वाणी इक विचार है, वाणी है व्यवहार
वाणी धैर्य अपार है ,वाणी से संसार .
वाणी ही तो पुकार है ,वाणी ही है गुहार
वाणी से ही प्रीत है ,वाणी से मनुहार .
वाणी से इकरार है ,वाणी से तकरार
वाणी से ही मीत है, वाणी से ही प्यार .
वाणी इक आधार है ,वाणी इक अधिकार
वाणी ही से रीत है, वाणी से परिवार .
वाणी ठंडी बयार है ,वाणी सुखी बहार
वाणी उर में करती है, प्राणों का संचार .
वाणी ही संवेदना ,वाणी ही सद्भावना
वाणी ही करुणा भरी, वाणी ही है प्रार्थना .
वाणी से परिहास है, वाणी से उपहास
वाणी ही एहसास है ,वाणी से ही आस .
वाणी रूप उद्गार है , वाणी ही उपहार
वाणी से ही जीत है, वाणी ही जीवन सार.