Friday 25 June 2021

जब सुख संध्या घिर आती है


जब सुख संध्या घिर आती है

अनुराग-राग बरसाती है

जब सुख संध्या घिर आती है....

सूर्य किरण ढल जाती थककर

सांझ स्नेह बरसाती सजकर

अरुनाभ अधर मुस्काती है

जब सुख संध्या घिर आती है....

प्रफुल्ल उरों से धूल उड़ाते

संग कृषक के पशु घर आते

आह्लाद सूकून भर लाती है

जब सुख संध्या घिर आती है....

निशा नशीली आती मनाने

भाल चूम लगती हर्षाने

रक्ताभ नजर इठलाती है

जब सुख संध्या घिर आती है....

भारती दास ✍️


Saturday 19 June 2021

दृष्टि फलक पर टिक जाती है

 

अब पिता जी नही है साथ

सहेज रखी है स्नेह सौगात

गम कड़वे अवसाद भूलाकर

अपने सारे दर्द छुपाकर

करते थे परवाह सदा ही

दिखाते हरदम राह खुदा सी

विधि ने छीना पिता की साया

आठ वर्ष होने को आया

मन कांपा था दिल दहला था

उनके बिना जब दिवस ढला था

दिन अनेकों गुजर गये हैं

यादें हृदय में ठहर गये हैं 

क्लेश दंश सब मोह को तजकर

छोड़ चले सबको पृथ्वी पर

शाश्वत सत्य में लीन हुये थे

पुनीत गंगा में विलीन हुये थे

गर्वित हो झुक जाता शीश

जैसे पिताजी देते आशीष

आंखें बहकर थक जाती है

दृष्टि फलक पर टिक जाती है.

भारती दास ✍️

Wednesday 9 June 2021

ऐसे देवतरू को प्रणाम


छाया जिनकी शीतल सुखकर

मोहक छांव ललाम

ऐसे देवतरु को प्रणाम

खगकुल सारे नीड़ बनाते

पशु पाते विश्राम

ऐसे देवतरु को प्रणाम.....

ब्रह्मा शंकर हरि विराजे

साधक जहां पर मन को साधे

सच्चे निर्मल सुंदर चित्त से

पूजते लोग तमाम

ऐसे देवतरु को प्रणाम....

सुहाग सदा ही रहे सलामत

हो आंचल में हर्ष यथावत

पुष्प दीप प्रसाद चढ़ाकर

गाते मंगल गान

ऐसे देवतरु को प्रणाम....

सत्यवान को प्राण मिला था

नव जीवन वरदान मिला था

अक्षय सौभाग्य जहां पर पाई

नारी श्रेष्ठ महान

ऐसे देवतरु को प्रणाम

भारती दास ✍️


वट सावित्री पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं

 


Tuesday 1 June 2021

अवसर वादी बनकर ही

 

एक व्यक्ति नदी किनारे 

कुटिया बनाकर रहता था़

नियमित रूप से श्रद्धापूर्वक

पूजा साधना करता था.

देखते-देखते बढ गई ख्याति

अनुयायी बन गये हजार

धन-पैसा बढता ही गया

समाया उर में दूषित विकार.

गरीब उनको रास न आते

अमीरों से मिलता उपहार

सोना चांदी की चकाचौंध में

भूल गया मधुर व्यवहार.

समय के साथ वो वृद्ध हुआ

रोगग्रस्त हो उठा शरीर

मृत्यु के डर से भयभीत हुआ

होने लगा बेचैन अधीर.

चित्त सदा कोसता रहता

सदा ही धन का मान बढ़ाया

लोगों की आस्था से खेला

लोभ में सारा पुण्य गंवाया.

अवसर वादी बनकर ही तो

दुखियों को सताता रहा

चमत्कार के नाम पर

भावनाओं को ठगता रहा.

सारी तपस्यायें विफल हुई

आत्मबोध न पाया कभी

पश्चाताप के आंसू बनकर

मिथ्या आडंबर बहा सभी.

गलती का एहसास हुआ

फिर भक्ति में लीन हुआ

दुविधा मिटी हृदय से सारी

मुक्ति-पथ पर तल्लीन हुआ.

भारती दास ✍️