Sunday 18 February 2024

वर्तमान नारी का जीवन

 


वर्तमान नारी का जीवन

क्यों इतनी व्यथित हुई है

व्याभिचारी-अपराधी बनकर

स्वार्थी जैसी चित्रित हुई है.

जब-जब भी बहकी है पथ से

वो पथभ्रष्ट दूषित हुई है

पीड़ा-दाता बनकर उसने

खुद ही जग में पीड़ित हुई है.

रूप कुरूप है उस नारी का

जब सृजन सोच से भ्रमित हुई है.

जीवन में होकर गुमराह 

सदा सदा ही व्यथित हुई है.

परिवार राष्ट की लाज मिटा कर 

भाग्य भी उसकी दुखित हुई है.

युग-युग का इतिहास ये कहती, 

नारी ही तो प्रकृति हुई है.

त्याग- तपस्या थी ऋषियों की,

गरिमामय सी सृजित हुई है.

है निवेदन उस नारी से, 

जो कभी दिग्भ्रमित हुई है.

वो अपना क्षमता दिखलाए, 

जिससे जग में पूजित हुई है.

भारती दास ✍️

Tuesday 13 February 2024

प्रेम दर्शन


संस्कृति हो या दर्शन

साहित्य हो या कला

प्रेम की गूढता अनंत है

ये समझे कोई विरला.

ये चिंतन में रहता है

ये दृष्टि में बसता है

जीवन का सौन्दर्य है ये

अनुभव में ही रमता है.

ये घनिष्ठ है ये प्रगाढ़ है

ये है इक अभिलाषा

विश्वास स्नेह का भाव है

ये है केवल आशा.

ये रिश्ता है ये मित्रता है

ये है विवेक की भाषा

शरीर आत्मा में है समाहित

ये चाहत की परिभाषा.

निर्वाध रूप से है निछावर

ये मृदु मोहक सा बंधन

कर्तव्य बोध से मिलकर ही 

ये करता संरक्षण.

ढाई -अक्षर प्रेम की गुत्थी

है अपनों का माध्यम

कवच ये बनता हर जीवन का

प्रेम है ऐसा पावन

भारती दास ✍️