Friday 22 February 2019

उसका करार भी खो गया


अनुबंध था उत्कर्ष का
सम्बन्ध था दुःख-हर्ष का
व्यापार था खुदगर्ज का
उसका करार भी खो गया.
दिया अनंत सम्मान था
पहचान था अभिमान था
जिसने बना नादान था
उसका करार भी खो गया.
जो रक्त पीता ही रहा
हरवक्त जीता ही रहा
जो दैत्य बन हंसता रहा
उसका करार भी खो गया.
जिसने मिटाया सुख-सुहाग
माता-पिता-बहनों की याद
जिसके ह्रदय में दहका आग
उसका करार भी खो गया.
मधुमय वसंत अनुराग था
कलरव जहाँ उल्लास था
जिसने किया सब नाश था
उसका करार भी खो गया.        

Wednesday 20 February 2019

अहले वतन तू कर ना गम

अहले वतन तू कर ना गम
तेरे पुत्र ने बांधा कफ़न
जिसने किया तुझपर सितम
उसका मिटा देंगे भरम.
हमने तो खाई है कसम
तेरे लिए निकलेगा दम
इच्छाओं का करके दमन
अर्पण करेंगे तन ये मन.
पहलू में हरपल मैं रहूं
कदमों में रखकर शीश यूं
है आरज़ू यही जूस्तजू
दामन में भर दूं मैं लहू.
ना चैन है ना करार है
सीने में दर्द अपार है
अश्कों की बहती धार है
रोती सिसकती बहार है.
क्यों कांपता ये पहाड़ है
खोया कहां हुंकार है
क्या भूल है क्या विकार है
क्यों हार ये स्वीकार है.
दुष्कर्म का ही प्रचार है
साक्षी सकल संसार है
उपचार हो ये पुकार है
करना नहीं उपकार है.

Saturday 9 February 2019

चिर बसंत फिर घर आये

चिर बसंत फिर घर आये
था सूना ये मन का आंगन
उपहार प्यार का भर लाये
चिर बसंत फिर घर आये...
मैं एकांत में टूट रही थी
गम विषाद से जूझ रही थी
मौन पड़ा था कोना कोना
विवश विकल सब भूल रही थी
उदगार द्वार फिर भर लाये
चिर बसंत फिर घर आये...
पुष्प वृंत पर फिर खिल आया
गीत मधुर मधुकर ने गाया
नव पत्रों से तरु तन दमके
विहग शाख पर मुस्काया
खुमार बहार फिर भर लाये...
उस अतीत की ,अतिशय सुख की
 प्रमुदित दृग की ,प्रफुल्लित गृह की       
सुभग सरल उस मंजू मुख की
अनंत शोक दुःख विस्मृत कर दे
अपार दुलार फिर भर लाये
चिर बसंत फिर घर आये...
करती हूं शिकवा तूल ना देना
फिर कुसुमाकर भूल ना जाना
जीवन के इस दोपहरी में
फिर सुख सागर रुठ ना जाना
मनुहार उदार फिर भर लाये
चिर बसंत फिर घर आये...