Saturday 28 November 2020

गुजरते हैं सुखों के क्षण

 

गुजरते हैं सुखों के क्षण
दुखों के पल गुजर जाते
समय की तय है सीमायें
सदा वो पल नहीं रहते....
गमों से जो नहीं डरते
सुखों में भी वही जीते
नहीं तो दर्द-पीड़ा-गम
मन झकझोर देते हैं....
ये रिश्ते हैं ये नाते हैं
ये बनते हैं बिगड़ते हैं
कभी देते हंसी में संग
कभी मुंह मोड़ लेते हैं....
जरा सोचें जरा समझें
यही जीवन है ये जानें
देते हैं हमें वो सीख
जो ज्यादा शोर करते हैं....
बहारें ये सिखाती है
पतझड़ भी तो साथी है
जीये हरदम सहज होकर
कठिन जब दौर होते हैं....
गुजरते हैं....
दुखों के....
भारती दास



 

 

Friday 13 November 2020

दीपों की पंक्ति कहती हैं

 



अंतर मन का यही सपना है
एक नेह का दीपक जलता रहे
ना शोर मचे ना होड़ चले
घर-आंगन का तम मिटता रहे.
दहलीज सभी का रोशन हो
तिमिर कभी ना अथाह रहे
स्नेह रहित ना संवेदन हो
जुड़े सदा मन चाह रहे.
ये पर्व प्रभा का महज ना हो
सर्वत्र सहज लालित्य रहे
चिंतन में किरण का उत्सव हो
एकता का शुभ सौंदर्य रहे.
परिवर्तन संभव हो न सके
बदलाव उजास की होता रहे
बल्वों की चादर चमके मगर
महत्ता दीपक की खास रहे.
समरसता का उत्सव है ये
ऊर्जा-आभा-सम्मान रहे
दीपों की पंक्ति कहती है
व्यक्ति में ना अभिमान रहे.
भारती दास ✍️
दीवाली पंचमहोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं