Saturday 9 February 2019

चिर बसंत फिर घर आये

चिर बसंत फिर घर आये
था सूना ये मन का आंगन
उपहार प्यार का भर लाये
चिर बसंत फिर घर आये...
मैं एकांत में टूट रही थी
गम विषाद से जूझ रही थी
मौन पड़ा था कोना कोना
विवश विकल सब भूल रही थी
उदगार द्वार फिर भर लाये
चिर बसंत फिर घर आये...
पुष्प वृंत पर फिर खिल आया
गीत मधुर मधुकर ने गाया
नव पत्रों से तरु तन दमके
विहग शाख पर मुस्काया
खुमार बहार फिर भर लाये...
उस अतीत की ,अतिशय सुख की
 प्रमुदित दृग की ,प्रफुल्लित गृह की       
सुभग सरल उस मंजू मुख की
अनंत शोक दुःख विस्मृत कर दे
अपार दुलार फिर भर लाये
चिर बसंत फिर घर आये...
करती हूं शिकवा तूल ना देना
फिर कुसुमाकर भूल ना जाना
जीवन के इस दोपहरी में
फिर सुख सागर रुठ ना जाना
मनुहार उदार फिर भर लाये
चिर बसंत फिर घर आये...

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