मेरे बाबूजी अच्छे थे
मन के वे सीधे सच्चे थे
उनको देखा मैंने हर क्षण
उनकी सीख है जीवन दर्शन।
सेवा ही उनकी शिक्षा थी
निष्ठा ही उनकी दीक्षा थी
निज सर्वस्व किये थे अर्पण
उन चरणों का करते वंदन।
हमसे इतने दूर गये हैं
सबसे मुख वे मोड़ गये हैं
तोड़ के सारे नाते बंधन
बहता ऑंखों से अश्रुकण।
उर विचलित जब भी होता है
गम पीड़ा से घबराता है
देखते उनको मन के दर्पण
यादों में बसते हैं हरदम।
भारती दास ✍️
ग्यारहवीं बरसी पर विनम्र श्रद्धांजलि 🙏 🙏
विनम्र श्रद्धांजलि
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सार्थक और भावप्रवण रचना आदरणीया
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अभिलाषा जी
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