Saturday, 15 June 2024

सब दोष मति का मूल है

 संतप्त हृदय बैठा चिड़ा था 

चिड़ी भी थी मौन विकल

निज शौक के लिए उड़ चला 

संतान जो था खूब सरल‌।

उसके पतन में था नहीं 

मेरा जरा भी योगदान 

स्वछंद तथा स्वाधीन था 

सुख स्वप्न का उसका जहान।

मन से, वचन से ,कर्म से 

मैं तो सदा ही साथ था 

उसकी सरलता-धीरता पर

केवल किया सब त्याग था।

शैशव दशा में जब वो था

पीड़ा अनेकों थे सहे 

आचार और व्यवहार संग 

सद्ज्ञान उसमें थे गहे।

समय यूं ही व्यतीत हुआ 

बचपन छोड़ कर युवा हुआ 

सौन्दर्य के आभा तले 

संस्कार उसका फीका हुआ.

सपूत कुल का क्षय करें

ये सर्वथा प्रतिकूल है 

हठधर्म ही पाले सदा 

सब दोष मति का मूल है.

यह सोचकर निर्धन हुआ 

मैं मानधन से हो विहीन

बलहीन और निर्बल हुआ 

मैं पिता, अब दीन हीन।


भारती दास ✍️ 


15 comments:

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  2. पितृ दिवस पर शुभकामनाएँ

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    1. धन्यवाद अनीता जी

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सर

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  4. हृदयस्पर्शी सृजन!

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    1. धन्यवाद शुभा जी

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  5. वर्तमान की ज्वलंत सच्चाई को व्यक्त करती सुंदर भावपूर्ण रचना।
    पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  6. बहुत बहुत सुन्दर

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  7. बहुत बहुत धन्यवाद सर

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  8. सुन्दर उदगार।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सर

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  9. सुन्दर सृजन

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  10. बहुत बहुत धन्यवाद सर

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