Friday, 30 December 2022

वक्त हूं मैं बदल जाता हूं

 


हर कर्तव्य निभा जाता हूं

वक्त हूं मैं बदल जाता हूं....

देखता हूं सितारों का मेला

चांद और सूरज का सब खेला

मुदित स्नेह हर्षा जाता हूं

वक्त हूं मैं बदल जाता हूं....

तिमिर जाल का घोर अंधेरा

हो चाहे मादक सुख धारा

सब कुछ उर में समा जाता हूं

वक्त हूं मैं बदल जाता हूं....

आह रात की रूदन दिवस की

मही निरीह सी दुःखी मलीन सी

नेत्र नीर मैं बहा जाता हूं

वक्त हूं मैं बदल जाता हूं....

भारती दास ✍️


10 comments:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति ।

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    1. धन्यवाद मीना जी

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    1. धन्यवाद पम्मी जी

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  4. वक्त का यही तो काम है

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  5. धन्यवाद अनीता जी

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  6. लाजवाब सुन्दर सृजन

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