हर कर्तव्य निभा जाता हूं
वक्त हूं मैं बदल जाता हूं....
देखता हूं सितारों का मेला
चांद और सूरज का सब खेला
मुदित स्नेह हर्षा जाता हूं
वक्त हूं मैं बदल जाता हूं....
तिमिर जाल का घोर अंधेरा
हो चाहे मादक सुख धारा
सब कुछ उर में समा जाता हूं
वक्त हूं मैं बदल जाता हूं....
आह रात की रूदन दिवस की
मही निरीह सी दुःखी मलीन सी
नेत्र नीर मैं बहा जाता हूं
वक्त हूं मैं बदल जाता हूं....
भारती दास ✍️
बहुत अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद मीना जी
Deleteसुंदर रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद पम्मी जी
Deleteवक्त का यही तो काम है
ReplyDeleteधन्यवाद अनीता जी
ReplyDeleteलाजवाब सुन्दर सृजन
ReplyDeleteधन्यवाद सर
ReplyDelete