ब्रह्म बीज होती है विद्या
जो स्वयं को ही बोधित करती है
अंतस की सुंदर जमीन पर
ज्ञान तरू बनकर फलती है.
हर कोई शिक्षा पाता है
कौशल निपुण बन जाता है
सिर ऊंचा करता समाज में
उत्थान में होड़ लगाता है.
लेकिन विद्या व्यवहार सिखाती
दंभ हरण कर देती है
मानस से तृष्णा हटाकर
भाव करुण भर देती है.
शिक्षा रोजी रोटी देती
जिम्मेदारी का धर्म निभाती
सत्कर्मों को जोड़ती खुद से
विद्या हृदय को विकसित करती.
सर्वोत्तम है मानव जीवन
जो विद्या का मर्म सिखाते हैं
शिक्षित हो मानव विद्या से
ज्ञान यही तो कहते हैं.
भारती दास ✍️
विद्या का महत्व बतलाती बहुत सुंदर रचना, भारती दी।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योति जी
Deleteसुंदर सृजन
ReplyDeleteधन्यवाद अनीता जी
Deleteउत्कृष्ट कृति।
ReplyDeleteधन्यवाद अमृता जी
Deleteअसाधारण सृजन । अभिनंदन आदरणीया ।
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (8-11-22} को "कार्तिक पूर्णिमा-मेला बहुत विशाल" (चर्चा अंक-4606) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
धन्यवाद कामिनी जी
Deleteसर्वोत्तम है मानव जीवन
ReplyDeleteजो विद्या का मर्म सिखाते हैं
-सत्य कथन
सुन्दर रचना
बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteवाह!भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
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