Saturday, 19 November 2022

हे योगी तेरी किन भावों को मानूँ

 


हे योगी तेरी किन भावों को मानूँ  

हर रूपों में तुम ही समाये,

उन रूपों को पहचानूँ 

हे योगी .....

लघुता-जड़ता पशुता-हन्ता 

सब कर्मों के तुम ही नियंता 

उन अपराधों को जानूँ 

हे योगी .....

तुम से प्रेरित नील गगन है 

जिसमें उड़ता विहग सा मन है  

उन परवाजों को जानूँ 

हे योगी ......

दुर्गम पथ पर चलना सिखाते 

मुश्किल पल में लड़ना सिखाते

उन सदभावों को जानूँ 

हे योगी .....

भारती दास ✍️

8 comments:

  1. सुंदर सृजन

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    1. धन्यवाद अनीता जी

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-11-22} को "कोई अब न रहे उदास"(चर्चा अंक-4618) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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    1. धन्यवाद कामिनी जी

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  3. बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीया

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  4. धन्यवाद अभिलाषा जी

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