Thursday, 25 August 2022

जीवन का सुख सारा बचपन

 

जीवन का सुख सारा बचपन
प्यारा-न्यारा-दुलारा बचपन
नहीं था चिंता कोई फिकर-गम
अल्हड़पन में डूबा निडर मन
मां की ममता पिता का डर
जिद्दी बन हठ करता मगर
दादी मां की कहानी सुनकर
दौड़ते गलियों में सब दिनभर
खो-खो कबड्डी छुपम छुपाई
छपछप कर बारिश की नहाई
दिन वो सुनहरे भूल न पाई
पल छिन वैसा कभी न आई
मन मचलता बचपन जैसा
वक्त नहीं है पुराने जैसा
हंसी ठिठोली करते रहते
हर दिन उत्सव जैसे होते
काश वही क्षण होता बचपन का
दर्द न होता पीड़ा गम का.
भारती दास ✍️

6 comments:

  1. बचपन के दिन भुलाए नहीं भूलते। सुंदर रचना।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद

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  2. बचपन के दिन बहुत अनमोल होते हैं।

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  3. बहुत बहुत धन्यवाद

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  4. बचपन की यादें ताजा करती बहुत ही सुंदर रचना।
    वाह!!!

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  5. धन्यवाद सुधा जी

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