जीवन का सुख सारा बचपन
प्यारा-न्यारा-दुलारा बचपन
नहीं था चिंता कोई फिकर-गम
अल्हड़पन में डूबा निडर मन
मां की ममता पिता का डर
जिद्दी बन हठ करता मगर
दादी मां की कहानी सुनकर
दौड़ते गलियों में सब दिनभर
खो-खो कबड्डी छुपम छुपाई
छपछप कर बारिश की नहाई
दिन वो सुनहरे भूल न पाई
पल छिन वैसा कभी न आई
मन मचलता बचपन जैसा
वक्त नहीं है पुराने जैसा
हंसी ठिठोली करते रहते
हर दिन उत्सव जैसे होते
काश वही क्षण होता बचपन का
दर्द न होता पीड़ा गम का.
भारती दास ✍️
बचपन के दिन भुलाए नहीं भूलते। सुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबचपन के दिन बहुत अनमोल होते हैं।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteबचपन की यादें ताजा करती बहुत ही सुंदर रचना।
ReplyDeleteवाह!!!
धन्यवाद सुधा जी
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