Wednesday, 18 May 2022

रहे सर्वथा उन्नत जन्मभूमि

 जिन गलियों में बचपन बीता

जिन शैशव की याद ने लूटा

उसी बालपन के आंगन में

हर्षित हो कर घूम आये हैं.

स्मृति में हर क्षण मुखरित है

दहलीज़ों दीवारों पर अंकित है

स्नेह डोर से बंधे थे सारे

पुलकित होकर झूम आये हैं.

नहीं थी चिंता फिकर नहीं था

भाई बहन संग मोद प्रखर था 

सुरभित संध्या के आंचल में

पुष्प तरू को चूम आये हैं.

न जाने कब हो फिर आना

इक दूजे से मिलना जुलना

रहे सर्वथा उन्नत जन्मभूमि

जहां स्वप्न हम बुन आये हैं.

भारती दास ✍️




18 comments:

  1. वाह! बहुत सुंदर!!!

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  2. धन्यवाद सर

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  3. धन्यवाद सर

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  4. वाह!मनकी पुलक मुखरित हो शब्दों में ढल गई।
    सुंदर।

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    1. धन्यवाद कुसुम जी

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  5. सुंदर रचना
    बचपन जीवित हो गया

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  6. बहुत ख़ूबसूरत...ख़ासतौर पर आख़िरी की पंक्तियाँ....

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  7. वाह । आ चलो लौट चलें बचपन के आंगन में ।
    सुंदर अभिव्यक्ति ।

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    1. धन्यवाद जिज्ञासा जी

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  8. सुंदर सृजन

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    1. धन्यवाद अनीता जी

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  9. हो कोई किमत लौट चलने कि अदा कर जाऊं
    रश्कि जवानी को उस नन्हें ' बचपन ' पर कुछ युं निछावर कर जाऊं।

    चिंता एवं चिन्तन मुक्त बचपन ! सुन्दर ! अति सुन्दर !

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  10. धन्यवाद सर

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  11. बहुत सुंदर रचना,

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  12. धन्यवाद मृदुला जी

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