दशानन के पिता ऋषि थे
पर मिला नहीं शिक्षण उदार
आसुरी वृत्तियों से संपन्न
माता थी उनकी बेशुमार.
दारा शिकोह को भाई ने मारा
कितना कलंकित था वो प्यार
शाहजहां को कैद किया था
ऐसा विकृत था परिवार.
वहीं दशरथनन्दन की मां ने
दी थी सुंदर श्रेष्ठ विचार
श्रीराम का सेवक बनकर
अपनाओ सदगुण आचार.
संघमित्रा और राहुल को पाला
यशोधरा ने देकर आधार
तप त्याग की महिमा सिखाई
बौद्ध धर्म का किया प्रसार.
ब्रह्म वादिनि थी मदालसा
पुत्रों को दी थी ब्रह्म का सार
सिर्फ कर्म स्थल ये जग है
विशुद्ध दिव्य तुम हो अवतार.
पिता हमेशा साधन देता
मां ही देती संपूर्ण आकार
सद आचरण प्रेम सिखाती
देती दंड तो करती दुलार.
सही दिशा उत्कृष्ट गुणों से
पोषित करती मां संस्कार
जैसा सांचा वैसा ही ढांचा
जिस तरह गढता कुंभकार.
भारती दास ✍️
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (8-5-22) को "पोषित करती मां संस्कार"(चर्चा अंक-4423) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
------------
कामिनी सिन्हा
धन्यवाद कामिनी जी
Deleteवाह! माता की महिमा को मंडित करती अत्यंत मोहक रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteबहुत सुंदर और गहन अहसास माँ से ही संस्कार पोषित होते हैं।
ReplyDeleteसुंदर सृजन।
धन्यवाद कुसुम जी
Deleteवाह उत्कृष्ट रचना !!
ReplyDeleteअनुपमा जी
Deleteसच माँ के संस्कार बोलते हैं
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रेरक रचना
धन्यवाद कविता जी
Deleteवाह! बहुत बढ़िया सराहनीय सृजन।
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद अनीता जी
ReplyDeleteमाँ की महिमा को बखान करती सुंदर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद अनीता जी
ReplyDelete