जीवन के निरंतरता में
याद नदी सी बहती रहेगी
दूर हुये क्यों सबसे बिछड़कर
मां की ममता बिलखती रहेगी.
चोट मिली है सारी उमर की
कातर करूणा सिसकती रहेगी
कौन समझता दर्द किसी का
वहशी ये दुनिया हंसती रहेगी.
चांद के घर में बैठे सुख से
विकल सी आंखें झड़ती रहेगी
प्रारब्ध बड़ा है जीवन छोटा
मौन व्यथा ये कहती रहेगी.
सूने-सूने से वृन्तों पर
पुष्प कली फिर खिलती रहेगी
अर्पित है भावों के गूंचे
स्नेह की लौ जलती ही रहेगी.
भारती दास ✍️
भाईजी की छठी पुण्य तिथि पर
श्रद्धांजलि
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ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (17-01-2021) को "सीधी करता मार जो, वो होता है वीर" (चर्चा अंक-3949) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक मंगल कामनाओं के साथ-
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत बहुत धन्यवाद सर
ReplyDeleteचांद के घर में बैठे सुख से
ReplyDeleteविकल सी आंखें झड़ती रहेगी
प्रारब्ध बड़ा है जीवन छोटा
मौन व्यथा ये कहती रहेगी.----भाईजी की श्रद्धांजलि के लिए इससे बेहतर और कुछ नहीं हो सकता
बहुत बहुत धन्यवाद
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ReplyDeleteसादर नमन
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी
Deleteसुन्दर सारगर्भित कृति..
ReplyDeleteधन्यवाद जिज्ञासा जी
Deleteअपने जाने के बाद भी कभी दिलों से नहीं जाते हैं
ReplyDeleteबहुत अच्छी मर्मस्पर्शी प्रस्तुति
धन्यवाद कविता जी
Deleteप्रारब्ध बड़ा है जीवन छोटा
ReplyDeleteमौन व्यथा ये कहती रहेगी. बहुत सुन्दर |
धन्यवाद सर
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