Saturday, 30 May 2020

अनुराग सिद्ध कर जाता है




परवानों को खूब पता है
जलती लौ है मौत की राह
फिर भी जलकर मर जाते हैं
नही करते खुद की परवाह.
पहचान बहुत है फूल-शूल की
पर कंटक पथ से ही चलते हैं
असहाय-निरुपाय मनुज तब
मार्ग शलभ जैसी चुनते हैं.
नीति-अनीति जानते सारे
अनभिज्ञ नहीं होते अंजान
होड़ ही होड़ में बढ जाते हैं
सोचते नहीं घातक परिणाम.
आत्मज्ञान भी इक शक्ति है
जो होता है सबके पास
काल-अनुरूप स्व-निर्णय से
बन जाते है बेहद खास.
अंकपाश में शमा को भरकर
प्रेम अथाह कर जाता है
पल दो पल में ही शलभ ये
अनुराग सिद्ध कर जाता है.
भारती दास



15 comments:

  1. बहुत सुन्दर और सार्थक।
    पत्रकारिता दिवस की बधाई हो।

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद सर

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  3. बहुत बहुत धन्यवाद

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  4. वाह!खूबसूरत भावाभिव्यक्ति ।

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    1. धन्यवाद शुभा जी

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  5. वाह!बेहतरीन सृजन आदरणीय दीदी.
    सादर

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  6. धन्यवाद अनीता जी

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  7. सादर नमस्कार,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (05-06-2020) को
    "मधुर पर्यावरण जिसने, बनाया और निखारा है," (चर्चा अंक-3723)
    पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।

    "मीना भारद्वाज"



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  8. एक बेहतरीन रचना

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  9. धन्यवाद सर

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  10. सुन्दर प्रस्तुति

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  11. बहुत बहुत धन्यवाद सर

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