परवानों को खूब पता है
जलती लौ है मौत की राह
फिर भी जलकर मर जाते हैं
नही करते खुद की परवाह.
पहचान बहुत है फूल-शूल की
पर कंटक पथ से ही चलते हैं
असहाय-निरुपाय मनुज तब
मार्ग शलभ जैसी चुनते हैं.
नीति-अनीति जानते सारे
अनभिज्ञ नहीं होते अंजान
होड़ ही होड़ में बढ जाते हैं
सोचते नहीं घातक परिणाम.
आत्मज्ञान भी इक शक्ति है
जो होता है सबके पास
काल-अनुरूप स्व-निर्णय से
बन जाते है बेहद खास.
अंकपाश में शमा को भरकर
प्रेम अथाह कर जाता है
पल दो पल में ही शलभ ये
अनुराग सिद्ध कर जाता है.
भारती दास ✍️
बहुत सुन्दर और सार्थक।
ReplyDeleteपत्रकारिता दिवस की बधाई हो।
बहुत बहुत धन्यवाद सर
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteवाह!खूबसूरत भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteधन्यवाद शुभा जी
Deleteवाह!बेहतरीन सृजन आदरणीय दीदी.
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद अनीता जी
ReplyDeleteसादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (05-06-2020) को
"मधुर पर्यावरण जिसने, बनाया और निखारा है," (चर्चा अंक-3723) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।
…
"मीना भारद्वाज"
Dhanyvad MeenaJI
ReplyDeleteएक बेहतरीन रचना
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteसार्थक
ReplyDeleteधन्यवाद सर
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
ReplyDelete