नारी ईश की अद्भुत
कृति
पल में ही वो वंदित होती
क्षण में ही वो कामना पूर्ति
नारी ईश की अद्भुत कृति....
सुख विभावरी की छलना सी
सुरभित अंचल की गरिमा सी
शीतल झरनों की अनुभूति
नारी ईश की अद्भुत कृति....
अनंत रुप की परिभाषा सी
तृप्त अतृप्त की अभिलाषा सी
पर पसार निज पथ उड़ जाती
नारी ईश की अद्भुत कृति....
सांझ किरण की दीपशिखा सी
खुद हर लेती तम कुटिया की
स्वजन नेह पर लुटती जाती
नारी ईश की अद्भुत कृति....
भारती दास ✍️
विश्व महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
पल में ही वो वंदित होती
क्षण में ही वो कामना पूर्ति
नारी ईश की अद्भुत कृति....
सुख विभावरी की छलना सी
सुरभित अंचल की गरिमा सी
शीतल झरनों की अनुभूति
नारी ईश की अद्भुत कृति....
अनंत रुप की परिभाषा सी
तृप्त अतृप्त की अभिलाषा सी
पर पसार निज पथ उड़ जाती
नारी ईश की अद्भुत कृति....
सांझ किरण की दीपशिखा सी
खुद हर लेती तम कुटिया की
स्वजन नेह पर लुटती जाती
नारी ईश की अद्भुत कृति....
भारती दास ✍️
विश्व महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
सुप्रभात जी। बहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteहोलीकोत्सव के साथ
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की भी बधाई हो।
बहुत बहुत धन्यवाद सर 🙏🙏
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद यशोदा जी
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (09-03-2020) को महके है मन में फुहार! (चर्चा अंक 3635) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
होलीकोत्सव कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
नारी और प्रेम की कभी स्पष्ट व्याख्या कर ही नहीं सकते।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
नई पोस्ट - कविता २
बहुत बहुत धन्यवाद सर
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