कहो जेठ तुम कब आये
अशांत घड़ी थी व्यस्त बड़ी थी
बोझिल पल हरवक्त पड़ी थी
फूर्सत के क्षण ने कुछ गाये
कहो जेठ तुम कब आये....
ज्योति प्रलय साकार खड़ा है
जलता पशु बेजान पड़ा है
दीन विकल रोदन ध्वनि गाये
कहो जेठ तुम कब आये....
आग उगलती अस्थि गलाती
उग्र लपट तो लू बरसाती
व्याकुलता से मन घबराये
कहो जेठ तुम कब आये....
उदास पहर है निराश शहर है
आहटहीन हर गली में घर है
तपन पूंज ने तन झुलसाये
कहो जेठ तुम कब आये....
वज्र कठोर रुप धर आये
तृष्णा धरा की बढ़ती जाये
घन काले अब जल बरसाये
कहो जेठ तुम कब आये....
अशांत घड़ी थी व्यस्त बड़ी थी
बोझिल पल हरवक्त पड़ी थी
फूर्सत के क्षण ने कुछ गाये
कहो जेठ तुम कब आये....
ज्योति प्रलय साकार खड़ा है
जलता पशु बेजान पड़ा है
दीन विकल रोदन ध्वनि गाये
कहो जेठ तुम कब आये....
आग उगलती अस्थि गलाती
उग्र लपट तो लू बरसाती
व्याकुलता से मन घबराये
कहो जेठ तुम कब आये....
उदास पहर है निराश शहर है
आहटहीन हर गली में घर है
तपन पूंज ने तन झुलसाये
कहो जेठ तुम कब आये....
वज्र कठोर रुप धर आये
तृष्णा धरा की बढ़ती जाये
घन काले अब जल बरसाये
कहो जेठ तुम कब आये....
सुन्दर रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-05-2019) को "देश और देशभक्ति" (चर्चा अंक- 3342) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद सर
ReplyDeleteधन्यवाद सर
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद अनुराधा जी
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