जिसकी महिमा का प्रसार
धरती पाताल गगन में
नारी की शक्ति की गरिमा
दौड़ रहा है कण-कण में.
मूर्ति बनकर सिमट के बैठी
संशय कैसे बताऊं मां
सिद्धियां सारी धारण करती
कहलाती सुखदाई मां.
करने को तेरा सुख-स्वागत
घर-घर सजा है मंगलमय घट
रोम-रोम हो उठा है पुलकित
अर्पित है चरणों में मस्तक.
धरती पाताल गगन में
नारी की शक्ति की गरिमा
दौड़ रहा है कण-कण में.
मूर्ति बनकर सिमट के बैठी
संशय कैसे बताऊं मां
सिद्धियां सारी धारण करती
कहलाती सुखदाई मां.
करने को तेरा सुख-स्वागत
घर-घर सजा है मंगलमय घट
रोम-रोम हो उठा है पुलकित
अर्पित है चरणों में मस्तक.
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