ग्रीष्म की
छुट्टियाँ बीती सुनहरी
अब दृष्टि स्कूल पर
ठहरी
हर्ष-विषाद है अंतस
नगरी
अश्क बहाता दृग की
गगरी .
तपा बदन जो चारों पहर
था
बहा पवन पर स्वेद
भरा था
अस्त-व्यस्त हो घूम
रहा था
थी तपन-भरी वो
दोपहरी.
देकर मीठी थपकी
सुलाती
परियों वाली कथा
सुनाती
दादी-नानी प्रेम
जताती
थी हरदम वो स्नेहभरी.
गुजर गया दिन पलक-झपक
चिंता बनकर समायी
मस्तक
पढनी होगी पोथी-पुस्तक
व्यथा यही है अब तो
बड़ी.
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