Saturday, 9 June 2018

ग्रीष्म की छुट्टियाँ बीती सुनहरी [ बाल-कविता]


ग्रीष्म की छुट्टियाँ बीती सुनहरी
अब दृष्टि स्कूल पर ठहरी
हर्ष-विषाद है अंतस नगरी
अश्क बहाता दृग की गगरी .
तपा बदन जो चारों पहर था
बहा पवन पर स्वेद भरा था
अस्त-व्यस्त हो घूम रहा था
थी तपन-भरी वो दोपहरी.
देकर मीठी थपकी सुलाती
परियों वाली कथा सुनाती
दादी-नानी प्रेम जताती
थी हरदम वो स्नेहभरी.
गुजर गया दिन पलक-झपक
चिंता बनकर समायी मस्तक
पढनी होगी पोथी-पुस्तक
व्यथा यही है अब तो बड़ी.     

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