Monday, 8 May 2017

ठहर जाओ घड़ी भर तुम



ठहर जाओ घड़ी भर तुम
जरा ये देख ले आँखें
थे सबके प्राण से प्यारे
किये अर्पण जो तुम सांसे.
जहाँ रौनक सवेरे थी
वही अब कंज मुरझाया
हुआ सूना सा अब आँगन
तिमिर बन गोधूली रोया.
हुआ व्याकुल सा नभ का पंथ
सिहर उठा  है ये तारे   
ह्रदय में है कसक उठी
हुए गीले पलक सारे.
जीवन विषाद बनकर
कहाँ ले जायेगा कल को
प्रति-क्षण याद आओगे
कहाँ ढूढेंगे हम तुमको.
पल ये दुखद मिटकर
कभी इतिहास बन जाये
दिलों में देश के बसकर
अमर ये नाम हो जाये.            

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