प्रथम किरण जब भू को छूती
जब विहग-बालिके करती शोर
मौन होकर श्रमिक निकलते
कार्य वे करते भाव-विभोर.
जेठ की तपती धूप वे सहते
बारिश के सहते बौछार
अनासक्त होकर श्रम करते
हो क्षुधा-पीड़ित चाहे बेजार.
साधनहीन है गांव आज भी
अभावग्रस्त है ढेरों किसान
ग्राम उजड़ते जाते हैं पर
नगरों का करते उत्थान.
बंजर-भूमि को तोड़ते रहते
अथक परिश्रम करते पुरजोर
श्रमिक-श्रम करते ही रहते
अनवरत पत्थर को तोड़.
तब व्यर्थ है पूजन-भजन
व्यर्थ है ईश की आराधना
श्रमेव की जय हो वहां पर
जहाँ श्रमिक करते हैं साधना.
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