आश्विन मास के कृष्ण-पक्ष
में
आरम्भ महालय का होता है
पितरों को नमन करने का
अनुपम अवसर ये होता है.
जिनकी कृपा से तन-मन मिलता
कृतज्ञ ये सारा जीवन होता
उनको तर्पण-अर्पण करते
अर्पित करते वंदन-पूजा.
रहता नहीं अवकाश किसी को
चिंतन-विचार कर पाने को
एक बार जो गए हैं जग से
कभी लौटे नहीं घर आने को.
पार्वण-श्राद्ध का मतलब
होता
भावनाओं का बने आधार
भावी-पीढ़ी में श्रद्धा
निहित हो
विकसित हो करुणा दुलार.
शास्त्रों में ऐसा कहते हैं
इस दिन पितर जमीं पर आते
इच्छित प्रेम और सुख को
पाकर
ढेर आशीष हमें दे जाते.
स्वर्गस्थ आत्मा की तृप्ति
होती है स्नेह लुटाने में.
केवल भाव ग्रहण करते हैं
खुश होते वो शीश झुकाने में.
कहते हैं कुछ लोग यही
गया-सिद्धपुर-बदरीनाथ
करके अंतिम-श्राद्ध यहाँ
मुक्त हो जाते हैं उसके बाद.
पितृऋण एक ऐसा ऋण है
जिसे चूका नहीं सकते हम
सच्चा-श्राद्ध यही होगा
उन्हें नमन करे जबतक है ये
तन.
श्रद्धा की अभिव्यक्ति है
पितृपक्ष का पार्वण-पर्व
उनका आशीर्वाद मिले
उनको भी हो हमपर गर्व.
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