हिंदी में लिखना और पढना
आज की पीढ़ी भूल गयी
अवमूल्यन करके भाषा को
आगे बढ़ना सीख गयी.
अंग्रेजी की असर है छायी
वही इनकी विवशतायें हैं
भाव भरे सौन्दर्य ना जाने
जो हिंदी की क्षमतायें हैं.
होता नहीं है दर्द उन्हें कि
ये उनकी अपनी भाषा है
संस्कृति में वो रची बसी थी
क्यों आज बनी निराशा है.
सभ्यता के इस छोर पर
बेहतर इसका वजूद बने
भाषा की सामर्थ्य बोध से
इक सुन्दरतम स्वरुप बने.
कश्मीर की फिजाओं में महके
दक्षिण के जल-तरंग में डोले
एक दिवस का उत्सव ना हो
हर दिन मुखर-प्रखर हो बोले.
है यही कामना अपनी
विश्व गांव की पहचान बने
देश के उन विकास पथ पर
एक अनुपम सा अभियान बने.
No comments:
Post a Comment