अक्षरहीन हो चाहे माता
या विद्द्या से हो महान
करुणा-ममता एक सी होती
संवेदनायें होती है समान.
गर्भ में ही अस्तित्व
निखरता
इक-दूजे में बसती है जान
विलीन होती रहती है लहरें
सागर में जिस तरह तमाम.
माँ का मतलब ही होता है
अंश में उसके जीवन पाना
अपने जिगर के टुकड़े में
खुद की छवि देख मुस्काना.
भावनायें विह्वल सी होती
उर में भी उदगारें भरती
अपनी संतानों में हरपल
पावन प्रेरणा भरती रहती.
उसके दर्द की आहट पाकर
बेचैन विकल सी वो हो जाती
त्याग-तितिक्षा की मूर्ति
बन
दर्द अनेकों वो सह जाती.
जोश-होश उत्साह-धैर्य से
पालन-पोषण करती जाती
एक सुखद स्मित को पाकर
अवसाद-विषाद ग़मों को भूलाती.
गहरी नींद में सो ना पाती
निज सुख से होती है दूर
प्राण-प्रण से होती निछावर
स्नेह लूटाती है भरपूर.
जिस माँ से होती उत्पत्ति
सामर्थ्य हमारी जिससे बनती
उसी माँ को भूल ही जाते
जिसकी दूध ने दी थी शक्ति.
भारती दास ✍️
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