ये लक्ष्यहीन जीना कैसा
जिसमें न हो कोई सपना
विवशतायें मेरी सीख नहीं
तुम धीर मेरे इतना सुनना.
आकुलता-भरी पुकार मेरी
महसूस सदा ही तुम करना
विफलता मुझको स्वीकार नहीं
संघर्ष हमेशा तुम करना.
मैं विवेका हूँ अवतार नहीं
मेरे ख्वाब अधूरे सच करना
मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ
मुझे सद्भावों में भर लेना.
है उपनिषदों का देश मेरा
उन चिंतन को अपना लेना
अपने सुन्दर सद्ग्यानों से
जन-जन को पोषित कर देना.
विखंडित करने वालों से
तुम मानवता को बचा लेना
विकृत झंझावातों में भी
इक स्नेह का दीप जला देना.
जाति-धर्म का भेद भुलाकर
लाज राष्ट्र की तुम रखना
करुणा की धारा बहती रहे
उस सुन्दर पथ पर तुम चलना.
भारत का स्वर्णिम युग अतीत
अपने धड़कन में बसा लेना
सन्देश यही आदेश मेरा
तुम कुछ हद तक निभा
देना.
भारती दास ✍️
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